कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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दिन या रात कभी आ जाता।
मेरे मन को पंख लगाता।
मुझ पर करता जादू अपना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, सपना।।
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आग ताप से कभी न डरता।
सास बहू के मन की करता।
दृढ़ शरीर पर रहता सिमटा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चिमटा।।
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गर्मी हो या बारिश आये।
हाथ पकड़ कर साथ निभाये।
मेरे सुख दुःख सहता जाता।
क्या सखि, साजन? ना सखि, छाता।।
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