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गंगा
आज गंगा के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन महाभारत और रामायण के अनुसार एक समय ऐसा भी था जब इस पृथ्वी पर गंगा का अस्तित्व नहीं था। कम से कम भगीरथ द्वारा उसे पृथ्वी पर लाने के पूर्व तक तो नहीं ही था। उन्होंने अपने पूर्वजों-सगर के उद्धत पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति के लिए यह गुरुतर कार्य सम्पन्न किया। सगर के पुत्रों ने कपिल ऋषि का अनादर किया था। फलस्वरूप ऋषि के कोप की अग्नि ने उन्हें भस्मीभूत कर दिया था। चूंकि उनकी अकाल मृत्यु अन्तिम संस्कार के बिना हुई थी, इसलिए उन्हें नर्क भोगना पड़ रहा था। बाद में ऋषि को बोध हुआ। उन्होंने भगीरथ के पितामह अंशुमान को सलाह दी कि यदि गंगा को उसकी पूर्ण पावनता के साथ पृथ्वी पर लाया जा सके और उसके जल से सगर के पुत्रों के भस्म का स्पर्श कराया जा सके, तो उनके सारे पाप धुल जायेंगे और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। (सम्भव है मरणासन्न या मृत्यु को प्राप्त हिन्दू के मुख में गंगाजल डालने की प्रथा का आधार यही मान्यता हो।) न तो अंशुमान और न उसका पुत्र दिलीप ही गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हो सके।
महाभारत और रामायण के अनुसार इस महत कार्य को अपनी अटल निष्ठा और सतत साधना से भगीरथ ने पूरा किया।
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