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रामानुज
रामानुज भक्ति मार्ग को मानने वाले महान वैष्णव संत व दार्शनिक थे। उनका द्वारा प्रतिपादित दर्शन विशिष्टाद्वैत मत कहलाता है और उनके अनुयायी श्रीवैष्णव कहे जाते हैं।
उन्होंने ब्रह्मसूत्र, उपनिष्दों और भगवद्गीता पर टीकाएं लिखीं। उनका मत था कि ये तीनों दार्शनिक ग्रन्थ भक्ति को ईश्वर-प्राप्ति का मुख्य साधन मानते हैं।
रामानुज ने अपने जीवन एवं उपदेशों से यही शिक्षा दी कि सब मानव एक समान हैं और ईश्वर जाति व सामाजिक पद के आधार पर मनुष्यों में भेदभाव नहीं बरतता। उन्होंने ब्राह्मण न होने पर भी कांचीपूर्ण जी को अपना गुरु माना। उनका एक प्रधान शिष्य, धनुर्दास भी ब्राह्मण नहीं था। रामानुज वैष्णवों को आदरणीय मानते थे। किन्तु वे केवल परमेश्वर से अपार स्नेह करने वाले को ही वैष्णव समझते थे।
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