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तितली

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2058
आईएसबीएन :81-8143-396-3

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प्रस्तुत है जयशंकर प्रसाद का श्रेष्ठतम उपन्यास...

अनवरी उठकर खड़ी हो गई। माधुरी चौकी पर ही थोड़ा खिसक गई। माता ने बैठने का संकेत किया। पर वह भीतर से शैला से बोलने के लिए उत्सुक थी। इन्द्रदेव ने कहा - अनवरी! माँ का दर्द अभी अच्छा नहीं हुआ। इसके लिए आप क्या कर रही हैं। क्यों माँ, अभी दर्द में कमी तो नहीं है?

है क्यों नहीं बेटा! तुमको देखकर दर्द दूर भाग जाता है।-श्यामदुलारी ने मधुरता से कहा।

तब तो भाई साहब, आप यहीं माँ के पास रहिए। दर्द पास न आवेगा।  -माधुरी ने कहा।

लेकिन बीबीरानी! और लोग क्या करेंगे? कुँवर साहब यहीं घर में बैठे रहेंगे, तो जो लोग मिलने-जुलने वाले हैं, वे कहाँ जायँगे! -अनवरी ने व्यंग से कहा।

यह बात श्यामदुलारी को अच्छी न लगी। उन्होंने कहा-मैं तो चाहती हूँ कि इन्द्र मेरी आँखो से ओझल न हो। वह करता ही क्या है मिस अनवरी! शिकार खेलने में ज्यादा मन लगाता है। क्यों, विलायत में इसकी बड़ी चाल है न! अच्छा बेटा! यह मेम साहब कौन हैं? इनका तो तुमने परिचय ही नहीं दिया। माँ, इंगलैण्ड में यही मेरा सब प्रबन्ध करती थीं मेरे खाने-पीने का, पढ़ने-लिखने का, कभी जब अस्वस्थ हो जाता तो डाक्टरों का, और रात-रात भर जागकर नियमपूर्वक दवा देने का काम यही करती थीं। इनका मैं चिर-ऋणी हूँ। इनकी इच्छा हुई कि मैं भारतवर्ष देखूँगी।

इसी से चली आई हैं न! अच्छा बेटा! इनको कोई कष्ट तो नहीं? हम लोग इनके शिष्टाचार से अपरिचित हैं। चौबेजी! आप ही न मेम साहब के लिए... ओ! इनका नाम क्या है, यह पूछना तो मैं भूल ही गई।

मेरा नाम 'शैला है माँ जी!- शैला की बोली घण्टी की तरह गूँज उठी! श्यामदुलारी के मन में ममता उमड़ आई। उन्होने कहा- चौबेजी! देखिए, इनको कोई कष्ट न होने पावे। इन्द्रदेव तो लड़का है, वह कभी काहे को इनकी सुविधा की खोज-खबर लेता होगा।

जी सरकार! मेम साहब बडी चतुर हैं। वह तो कुंवर साहब का प्रबन्ध स्वयं आदेश देकर कराती रहती हैं। हम लोग तो अभी सीख रहे हैं। बड़े सरकार के समय में जो व्यवस्था थी, उसी से तो अब काम नहीं चल सकता!

इन्द्रदेव घबरा गये थे। उन्हे कभी चौबे, कभी अनवरी पर क्रोध आता; पर वह बहाली देते रहे।

माधुरी ने कहा-अच्छा तो भाई साहब! अभी शहर चलने की इच्छा नहीं है क्या? अब तो यहाँ कड़ी दिहाती सर्दी पड़ेगी।

नहीं, अभी तो यही रहूंगा। क्यों माँ, यहाँ कोई कष्ट तो नहीं है?-इन्द्रदेव  ने पूछा।

अनवरी ने कहा- इस छोटी कोठी में साफ हवा कम आती है। और तो कोई... हाँ बीबीरानी, मैं यह तो कहना भूल ही गई थी कि मुझे आज शहर चला जाना चाहिए। कई रोगियों को आज ही तक के लिए दवा दे आई हूँ। मोटर तो मिल जायगी न?

ठहरिए, आप तो न जाने क्यों घबराई हैं। अभी तो माँ की दवा... माधुरी की बात पूरी न होने पाई कि अनवरी ने कहा- दवा खायँगी तो नहीं, यही लगाने की दवा है। लगाते रहिए, मुझे रोक कर क्या कीजिएगा। हाँ, यहाँ साफ हवा मिलनी चाहिए, इसके लिए आप सोचिए।

चौबेजी बीच में बोल उठे-तो बड़ी सरकार उस कोठी में रहे, खुले हुए कमरे और दालान उसमें तो हैं ही।

बोलने के लिए तो बोल गये; पर चौबेजी कई बातें सोचकर दाँत से अपनी जीभ दबाने लगे। उनकी इच्छा तो हुई कि अपने कान भी पकड लें; पर साहस न हुआ।

इन्द्रदेव चुप रहे। शैला ने कहा-माँ जी! बड़ी कोठी में चलिए। यहाँ न रहिए। - यह बेचारी भूल गई कि श्यामदुलारी उसके साथ कैसे रहेंगी।

श्यामदुलारी ने इन्द्रदेव का चेहरा देखा। वह उतरा हुआ तो नहीं था; किन्तु उस पर उत्साह भी न था। माधुरी ने शैला को स्वयं कहते हुए जब सुना,

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