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एकनाथ
मध्ययुग में हमारे देश की आम जनता धर्मग्रंथों के बारे में कुछ नहीं जानती थी, क्योंकि धर्मग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गये थे। संस्कृत पढ़ने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को प्राप्त था और वे अपने स्वार्थ साधने के लिए आम जनता को जानबूझ कर अज्ञानी बनाये रखते थे।
एकनाथ (1533-1577) ने भागवत पुराण के ग्यारहवें अध्याय की व्याख्या मराठी में लिखी। उपनिषदों का संदेश भी वे अभंग पदों के द्वारा मराठी में देने लगे तो कट्टरपंथी लोगों ने हाय तोबा मचानी शुरू कर दी। महान धर्मग्रंथों को जनता की सामान्य भाषा में समझाया जाय यह उन्हें सहन नहीं था। लेकिन एकनाथ ने कहा "यदि संस्कृत को ईश्वर ने बनाया है तो प्राकृत बर्वर डाकुओं ने नहीं बनायी। ईश्वर भाषाओं में भेदभाव नहीं बरतता। उसके लिए संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में कोई भेदभाव नहीं। मेरी मातृभाषा मराठी ऊँची से ऊँची भावनाओं को अभिव्यक्ति देने की क्षमता रखती है।
उन्होंने 'भावार्थ रामायण' तथा 'रुक्मिणी स्वयंवर' की भी रचना की। उन्होंने ज्ञानेश्वर लिखित ज्ञानेश्वरी का पहला आधिकारिक संस्करण तैयार किया। एकनाथ को केवल संत ही नहीं मराठी का एक बड़ा कवि भी माना जाता है।
'अमर चित्रकथा' का यह अंक एकनाथ के जीवन से संबंधित कुछ किंवदंतियों के आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है।
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