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नरसी मेहता
वैष्णव जन तो तेने कहिए...' गांधी जी का बड़ा प्रिय भजन था। यह और ऐसे हजारों भजनों तथा गीतों की रचना की थी गुजरात के प्रसिद्ध भक्त-कवि नरसिंह मेहता ने। नरसी भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और अपने इष्ट देव पर उनका अटल विश्वास था। बचपन से ही उन्होंने अपने जीवन का सारा भार भगवान को सौंप दिया था। आगे चलकर घर-गृहस्थी की ज़िम्मेदारियां भगवान कृष्ण के हवाले करके वे भजनों की रचना करने और गाने में तल्लीन रहने लगे थे।
आज कानून छुआछूत को अपराध मानता है। इसके उपरांत भी हरिजनों में सुरक्षा की भावना नहीं आयी है और उन पर जोर-जुल्म होते रहते हैं। अनुमान कीजिए, पाँच सौ वर्ष पहले, जब हरिजन की छाया मात्र शरीर पर पड़ जाने से सवर्णों को स्नान करना पड़ता था, हरिजनों की क्या दुर्दशा रही होगी। उस युग में भक्त नरसी मेहता ने - वे इसी नाम से लोकप्रिय हुए - हरिजनों की बस्ती में भजन गाने जाकर कट्टरपंथियों का क्रोध मोल लिया था। बड़े साहसी समाज सुधारक थे वे।
पारिवारिक जीवन से उनका विराग अनुपम था। पत्नी और पुत्र की मृत्यु के समय भी ये भजन गाते रहे। नाटकीय और आश्चर्यजनक घटनाओं से परिपूर्ण उनकी जीवनी यहां चित्रों में प्रस्तुत है।
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