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सुदामा
भागवत पुराण के दसवें स्कन्ध में भगवान कृष्ण का जीवन-चरित्र - उनका जन्म, बाल-काल. किशोरावस्था तथा प्रौढ़ावस्था - प्रस्तुत किया गया है। इसकी कथाएँ अत्यन्त रोमांचक हैं और साथ ही उन लोगों को प्रेरणा देती हैं तथा सही मार्ग दिखाती हैं जो जीवन को सार्थक बनाना तथा ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं।
सुदामा भगवान् कृष्ण के बालपन के अभिन्न मित्र तथा अनन्य भक्त थे। उनका जीवन-चरित्र युग-युग से बालकों को लुभाता आ रहा है। यह भी इस दसवें स्कन्ध में आता है। वैराग्य के सिद्धान्त को सुदामा ने भली भाँति समझा है। कृष्ण के प्रति सुदामा के स्नेह पर अगणित भजनों की रचना की गयी है। उनकी कथा दीन-हीनों के विश्वास तथा श्रद्धा को सम्बल प्रदान करती आ रही है। सुदामा अत्यन्त निर्धन थे तथापि सुखी थे। उनकी पत्नी भी घर में बच्चे होने तक सर्वथा संतुष्ट थी।
उसने अपने पति को कृष्ण के पास जाने को राजी किया जो सुदामा के बचपन के मित्र थे और बड़े समृद्ध तथा कृपालु थे। और सुदामा जब उनके पास गये तो क्या हुआ-यही इस चित्र कथा में प्रस्तुत है।
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