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त्यागराज
भारतीय संगीत-आकाश में ईश्वर की महिमा गा कर उनके चरणों में पहुंचने वाले संतों की आकाशगंगा में त्यागराज एक देदीप्यमान नक्षत्र हैं। उनके आराध्य थे श्री राम। दक्षिण भारत के एक छोटे से अनजाने गाँव की एक साधारण कुटिया में बैठ कर उन्होंने राम-नाम की ऐसी निर्झरिणी प्रवाहित की कि तत्कालीन ग्रामवासी उसमें आकंठ डूब गए। भोले-भाले ग्रामीण यह सोच भी नहीं सकते थे कि संत की वे ही रचनाएं एक दिन कर्नाटक संगीत की परम्परा की आधार-शिला बनेंगी। कहा जाता है कि उनके तेलुगु भजन लगभग 9000 थे। किन्तु अब केवल हजार भजन मिलते हैं। उनके गीतों में उपनिषदों का सार है। ये कर्नाटक संगीत प्रेमियों को सुरीले माध्यम से शान्ति, आनन्द का बोध कराते हैं।
कावेरी के तट पर तिरुवय्यारु में बनी उनकी समाधि सारे विश्व के कर्नाटक संगीत प्रेमियों का तीर्थ स्थल है। प्रति वर्ष जनवरी में उनकी पुण्य-तिथि के अवसर पर देश के विभिन्न भागों से संगीतकार और पारखी तिरुवय्यारु में आ जुटते हैं और उस महान संत-संगीतकार की स्मृति में संगीत सम्मेलन द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
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