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तुकाराम
महाराष्ट्र के साधु-सन्त सारे देश के लिए गर्व का कारण हैं। इनमें से अधिकांश, अन्य स्थानों के संतों के विपरीत, ऊँचे घरानों के नहीं थे। जाति और धर्म से नहीं तो आर्थिक दृष्टि से उनका जन्म समाज के निचले वर्ग में हुआ। तुकाराम जो अध्यात्म की रहस्यवादी परम्परा के शिरोमणि माने जाते हैं, ऐसे ही घराने के थे। हर दृष्टि से उन्हें निम्न वर्ग का ही कहा जायेगा। वे न तो ब्राह्मण कुल के थे, न विद्वान ही। प्रारम्भिक जीवन में उनकी छोटी-सी दुकान थी। उनकी यह मामूली हैसियत अध्यात्म का मार्ग अपनाने वालों के लिए आदर्श है।
आध्यात्मिक आनन्द के इस मार्ग पर चलने में तुकाराम को अनेक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं। उन्हें मनुष्य की क्रोध, मद और मोह आदि दुर्बलताओं से जूझना पड़ा। इस संघर्ष में सतत परिश्रम और अडिग विश्वास ही उनके सहायक थे।
प्रारम्भ में उनके पास कोई निधि थी तो कविता करने की जन्मजात प्रतिभा। उनकी रचनाएँ बड़ी सरल हैं। परन्तु इस सरलता में बड़ी शालीनता है। उनके अभंगों में बौद्धिकता का अलंकार नहीं, पर्वत-शिखरों की सादगी और गरिमा है। इसीलिए उनकी रचनाएँ महाराष्ट्र के जन-जीवन का अविच्छिन्न अंग हैं।
प्रस्तुत रचना किसी एक कथा पर नहीं, उनके बारे में प्रचलित कई कथाओं पर आधारित है।
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