लोगों की राय
जीवन कथाएँ >>
लज्जा
लज्जा
प्रकाशक :
वाणी प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2022 |
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
|
पुस्तक क्रमांक : 2125
|
आईएसबीएन :9789352291830 |
 |
|
8 पाठकों को प्रिय
360 पाठक हैं
|
प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
सुरंजन शुरू-शुरू में अपना घर छोड़कर कबूतर की कोठरी में रहना पड़ रहा है, इसलिए चिड़चिड़ाता था। बाद में उसे भी आदत पड़ गयी थी। विश्वविद्यालय में भर्ती हुआ, नये-नये दोस्त बने, फिर से सब कुछ अच्छा लगने लगा। यहाँ भी वह राजनीति करने लगा। यहाँ की मीटिंग, जुलूस में भी लोग उसे बुलाने लगे। किरणमयी को यह सब अच्छा नहीं लगता था, वह पहले भी सुरंजन को मना कर चुकी थी और आज भी उसे आपत्ति है। वह अपने हाथों से लगाये गये बगीचे, पेड़-पौधों आदि के वार में सोच-सोच कर आँसू बहाती रहती थी। उसे याद आया कि क्या उन्होंने जो सेम का मचान लगाया था, वह अब तक है? और वह अमरूद का पेड़! उतने बड़े अमरूद मुहल्ले के किसी भी पेड़ में नहीं फलते थे। नारियल के पेड़ों के नीचे क्या वे लोग नमक-पानी देते होंगे! क्या इन बातों को सांचकर सिर्फ किरणमयी को ही तकलीफ होती थी, सुधामय को नहीं होती?
ढाका में तबादला होने के बाद सुधामय ने सोचा था कि प्रमोशन के लिए कुछ किया जा सकेगा। मंत्रालय में गये भी थे लेकिन वहाँ जाकर छोटे-छोटे किरानियों की टेविल के सामने धरना देकर बैठे रहना पड़ता था। भाई मेरी फाइल का कुछ होगा?' सवाल करते-करते थक गये थे लेकिन इसका सही जवाब कभी नहीं मिला। हो रहा है,' 'होगा' जैसे शब्द सुनकर सुधामय को वापस आना पड़ता था। कोई-कोई कहता, 'डॉक्टर बाबू, मेरी लड़की को आँव हुआ है जरा उसके लिए दवा लिख जाए। वे अपना पैड और पेन निकालकर लिखते फिर पूटते, 'मेरा काम होगा तो फीट नाब?' फरीद साहब तब मुस्कराकर कहने nis, 'यह सब क्या हमारे बस की बात है?' सुधामय को सूचना मिलती कि उनके जूनियरों का प्रमोशन हो रहा है। उनकी आँखों के सामने डॉ. करीमुद्दीन, डॉ. याकूब मोल्ला की फाइलें आयीं। वे एसोसियेट प्रोफेसर के रूप में पोस्टिंग लेकर काम भी करने लगे और सुधामय का जूता सिर्फ घिसता ही गया। वे हमेशा कहते रहते, 'आज नहीं कल आइए', 'आपकी फाइल सचिव के पास भेद दी जाएगी। या फिर 'कल नहीं, परसों आइए आज मीटिंग है। कभी कहते ‘मंत्री देश के बाहर गये हुए हैं, एक महीना बाद आइए।' रोज-रोज यह सब सुनते-सुनते एक दिन सुधामय को समझ में आ गया कि अब कुछ होने वाला नहीं। डेढ़-दो वर्षों तक पदोन्नति के पीछे भाग-दौड़ करके तो देख लिये। जिन लोगों को लाँघ कर जाना होता है, वे जाते ही हैं। उनकी योग्यता रहे या न रहे। सेवानिवृत्ति का समय आ गया। इस समय एसोसियेट प्रोफेसर का पद प्राप्त करना उनका हक बनता था, उन्होंने इस पद के लिए कोई लोभ नहीं किया। यह तो उनका हक था। जूनियर लोग इस पद को लेकर उनके सिर पर विराजमान थे।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai