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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'इसका कारण?'

'ताकि हिन्दुओं की आबादी घटने का सही-सही हिसाब मिल पाये।'

'तो कहा जा सकता है कि यह सरकार बड़ी चालाक है। है न, काजल दा?'

सुरंजन ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।

काजल देवनाथ ने और कुछ न कहकर एक सिगरेट होंठों से लगा ली। फिर पूछा, 'एश ट्रे है?'

'पूरे कमरे को ही एश ट्रे मान लीजिए।'

'तुम्हारे माँ-बाप से मिलकर उन्हें क्या सांत्वना दूंगा, बताओ तो?' काजल देवनाथ लज्जा से सिर झुका लेते हैं। उन्हें इतनी लज्जा होती है मानो उन्हीं के भाई ने माया का अपहरण किया है।

फिर माया का प्रसंग। फिर उसकी छाती से ज्वालामुखी की तरह लावा निकलता है। सुरंजन इस प्रसंग को बदलते हुए कहता है, 'अच्छा काजल दा, जिन्ना ने तो कहा ही था अब से हम सभी पाकिस्तानी हैं, कोई हिन्दू-मुसलमान नहीं। फिर भी क्या हिन्दुओं का भारत-पलायन नहीं घटा?'

'जिन्ना थे इस्माइलिया खोजा। मुलमान होकर भी वे हिन्दू उत्तराधिकार कानून मानते थे। उनकी पदवी दरअसल खोजानी थी। नाम था 'झीना भाई खोजानी।' झीना भर रखकर बाकी नाम उन्होंने छोड़ दिया। जिन्ना ने कहा जरूर था उसके बाद भी हिन्दू लोग वैमनस्य के शिकार हुए। ऐसा न होने पर जून, 1948 के बीच पूर्वी पाकिस्तान से ग्यारह लाख हिन्दू भारत क्यों चले जाते? भारत में वे 'रिफ्यूजी' के रूप में जाने गये।'

‘पश्चिम बंगाल में हुए दंगे के कारण अनेक मुसलमान भी इस देश में चले आये।'

'हाँ, वेस्ट बंगाल और आसाम से काफी मुसलमान भी इस देश में चले आये हैं। क्योंकि तब भारत और पाकिस्तान सरकार के बीच 'नेहरू-लियाकत' समझौता हुआ था। समझौते में कहा गया-'दोनों देश के अल्पसंख्यक धर्म निर्विशेष नागरिक के रूप में समान अधिकार के हकदार होंगे।' उनका जीवन, संस्कृति और सम्पत्ति का अधिकार निश्चित किया गया, उनके विचार व्यक्त करने और धार्मिक आचरण की स्वाधीनता को स्वीकार किया गया। इस समझौते की शर्त के अनुसार वहाँ से आये लोग वापस लौट गये। लेकिन यहाँ से गये लोग फिर नहीं लौटे। न लौटने पर भी कुछ समय तक के लिए लोगों का वहाँ जाना रुक गया था। लेकिन 1951 में पाकिस्तान की संविधान सभा में ऐसे दो नियम पास हुए, 'ईस्ट बंगाल इवाक्वी प्रापर्टी एक्ट ऑफ 1951' और 'ईस्ट बेंगाल इवाक्वीस एक्ट ऑफ 1951'। इन कारणों से पूर्वी पाकिस्तान से पलायन करने वालों की संख्या 35 लाख तक पहुँच गयी। ये बातें तुम्हारे पिता को ज्यादा अच्छी तरह मालूम होंगी।'

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