लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


किरणमयी भी निश्चिंत हुई। सुधामय चश्मे का शीशा पोंछते हुए बोले, 'दरअसल सारा दंगा-फसाद इधर ही है। मयमनसिंह में कभी दंगा होते नहीं देखा। अच्छा, हमारे मयमनसिंह में भी कुछ हुआ है क्या, हरिपद बाबू?'

'सुना है, पिछली रात में फूलपुर थाने के बथुआडीह गाँव में दो मंदिर, एक पूजा मंडप और त्रिशाल में एक काली मंदिर तोड़ दिया है।

'शहर में तो कुछ नहीं हुआ होगा? दरअसल, देश के उत्तर की ओर यह सब कम ही होता है। हमारे तरफ तो कभी मंदिर जलाने की घटना नहीं घटी, है न किरणमयी?'

'नार्थ बुक हॉल रोड के सार्वजनिक पूजा दफ्तर, जमींदारों की काली प्रतिमा और मंदिर सब कुछ का ध्वंस का दिया। आज शान्तिनगर का 'जलखाबार' (नाश्ता) नामक मिठाई की दुकान, शतरूपा स्टोर को भी लूटने के बाद जला दिया गया। पिछली रात में जमात शिविर के लोगों ने कुष्टिया के छह मंदिरों को तोड़ दिया। इसके अलावा चिटागांग, सिलहट, भोला, शेरपुर, काक्सबाजार, नोवाखाली के बारे में जो कुछ भी सुना है, उससे तो मुझे बहुत डर लग रहा है।'

'डर किस बात का?' सुधामय ने पूछा।

‘एक्सोड्स!'

'अरे नहीं! इस देश में उस तरह से दंगा नहीं होगा!!

'नब्बे की बातें भूल गये दादा! या फिर वह आपको उतना महत्त्वपूर्ण नहीं लगा।'

'वह तो इरशाद सरकार द्वारा रची गई घटना थी।'

'क्या कह रहे हैं दादा! बांगला देश सरकार के जनसंख्या ब्यूरो का हिसाब देखिए न। इस बार ‘एक्सोड्स' भयंकर ही होगा। सजाई हुई घटना में लोग अपने देश की मिट्टी को त्याग कर इस तरह से चले नहीं जाते। क्योंकि देश की मिट्टी तो फूल के गमले की मिट्टी नहीं है, जिसे खाद-पानी देकर थोड़े-थोड़े दिन बाद बदल दें। दादा, काफी डरता हूँ। एक लड़का कलकत्ता में पढ़ता है। लड़कियाँ यहाँ हैं। लड़कियाँ बड़ी हो गयी हैं उनकी फिकर में नींद नहीं आती। सोचता हूँ, कहीं चला जाऊँ।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book