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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


1952 का भाषा आन्दोलन, 1954 का संयुक्त फ्रंट निर्वाचन, 1962 का शिक्षा आन्दोलन, 1964 का फौजी शासन विरोधी आन्दोलन, 1966 में छह दफा आन्दोलन, 1968 का अगरतल्ला षड्यंत्र मामला विरोधी आन्दोलन, 1970 का आम चुनाव और 1971 का मुक्ति युद्ध इस बात को प्रमाणित करते हैं कि द्विजातीय आधार पर देश विभाजन का सिद्धान्त सरासर गलत था। अबुल कलाम आजाद ने कहा था-
It is one of the greatest frauds on the people to suggest the religions affinity can unite areas which are geognaphically, economically, linguistically and culturally different. It is true that Islam sought to establish a society which transcends racial, linguisitic, economic and political forntiers. History has boweven proved that after the first few decades or at the most after the first century. Islam was not able to unite all the muslim countries on the basis of Islam alone.

जिन्ना भी द्विजातीय खोखलेपन की बात को जानते थे। माउंटबेटन ने जब पंजाब और बंगाल के विभाजन की बात कही थी, तब जिन्ना ने ही कहा था-
A man is Panjabi or Bengali before he is Hindu or Muslim. They share a common history, language, culture and economy. You must divide them. You will cause endless bloodshed and trouble.

सन् 1947 से 1971 तक 'बंगाली जाति' को अनंत रक्तपात और कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी थीं, जिसकी चरम परिणति 1971 का मक्ति युद्ध था। तीस लाख बंगालियों के खून के बदले में प्राप्त आजादी इस बात को प्रमाणित करती है कि धर्म कभी जाति-सत्ता की नींव पर नहीं रह सकता। जाति-सत्ता की नींव भाषा-संस्कृति, इतिहास आदि हैं। यह सच है कि पंजाबी मसलमान के साथ बंगाली मुसलमान की ‘एक जातीयता' एक दिन पाकिस्तान द्वारा ही लायी गयी थी। लेकिन हिन्दू-मुसलमान की द्विजातीयोत्तर धारणा को तोड़कर इस देश के बंगालियों ने सिद्ध कर दिया है कि उन्होंने पाकिस्तान के मुसलमानों के साथ सुलह नहीं की।

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