लोगों की राय

कविता संग्रह >> परशुराम की प्रतीक्षा

परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2216
आईएसबीएन :81-85341-13-3

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

18 पाठक हैं

रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...

एक बार फिर स्वर दो।

देख रहे हो, गाँधी पर कैसी विपत्ति आयी है?
तन तो उसका गया, नहीं क्या मन भी शेष बचेगा?
चुरा ले गया अगर भाव-प्रतिमा कोई मन्दिर से,
उन अपार, असहाय, बुभुक्षित लोगों का क्या होगा,
जो अब भी हैं खड़े मौन गाँधी से आस लगा कर?

एक बार फिर स्वर दो।
कहो, सर्वत्यागी वह संचय का सन्तरी नहीं था,
न तो मित्र उन साँपों का जो दर्शन विरच रहे हैं
दंश मारने का अपना अधिकार बचा रखने को।

एक बार फिर स्वर दो।
उन्हें पुकारो, जो गाँधी के सखा, शिष्य, सहचर हैं।
कहो, आज पावक में उनका कंचन पड़ा हुआ है।
प्रभापूर्ण हो कर निकला यह तो पूजा जायेगा ;
मलिन हुआ को भारत की साधना बिखर जायेगी।

एक बार फिर स्वर दो।
कहो, शान्ति का मन अशान्त है, बादल गुजर रहे हैं,
तप्त, ऊमसी हवा टहनियों में छटपटा रही है।
गाँधी अगर जीत कर निकले, जलधारा बरसेगी,
हारे तो तूफान इसी ऊमस से फूट पड़ेगा।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book