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कागज के टुकड़े

मौलिश्री

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :76
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2394
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है चुनी हुई कविताएँ....

Kakaj Ke Tukade

कागज के टुकड़े रचना की प्रत्येक भावाभिव्यक्ति में मौलिक चिंतन, संवेदनशील सरल, सहज, निष्कपट कोमल रचनात्मक बाल-मन की प्रौढ़ झलक है।

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश


प्रस्तावना


कागज़ के टुकड़े: इस संग्रह में मौलिश्री की 1995 से 1999 तक की कविताएँ संगृहीत हैं। अलग-अलग शीर्षकों से लिखी गयी ये स्फुट कविताएँ, शीर्षकों की दृष्टि से, विविधता का आभास देती हैं, पर लगभग सभी में जीवन और मरण, मानवीय नियति और उसका अर्थ, अस्तित्व और उसका सार या निस्सारता जैसे प्रश्न एक गहरी अन्तर्धारा के रूप में प्रवहमान है, और उस धारा के ऊपर संशय और अवसाद का घना कुहासा है। इन कविताओं का सहज वेग, जो शिल्प और सजावट की अपेक्षा नहीं रखता, हमें विचलित करता है, झकझोरता है। इनमें मन:स्थिति का चढ़ाव उतार है, पर वह एक सघन, सान्द्र मन:स्थिति है. जिन्दगी के बहुरंगी पक्षों से वह विरक्त सी है।
इसी के साथ जब हम देखते हैं कि मौलिश्री अभी सिर्फ तेरह साल की है और आठवीं कक्षा में पढ़ती है, और ये कविताएँ उसने चौथी कक्षा में और उसके बाद लिखी हैं तो इन्हें हम मात्र एक चमत्कार के रूप में ले सकते हैं। उनकी भावात्मक परिपक्वता हमें आश्चर्य में डालती हैं। उनका अवसाद हमारे लिए एक पहेली बनकर उभरता है और जीवन के कई पक्षों पर हमें नये सिरे से सोचने को विवश करता है।
निस्संदेह मौलिश्री में असामान्य प्रतिभा है। मेरे लिए यह विशेष रूप से विस्मयजनक अनुभव है क्योंकि एक हद तक मैं स्वयं इन कविताओं की रचना-प्रक्रिया का साक्षी रहा हूँ। उसकी प्रतिभा के सम्यक् विकास और उसके उज्जवल भविष्य के लिए कोटिश: आशीर्वाद देते हुए मैं यह कामना व्यक्त करता हूँ कि उसका कवित्व समुन्नत हो और उसका कविता-संसार अवसाद और हताशा की परिधि तोड़कर अपने लिए एक स्वच्छन्द, उल्लाससमय अंतरिक्ष की खोज करने में समर्थ हो।
-श्रीलाल शुक्ल



समर्पण


बड़ी मम्मी को जो मम्मी जैसी हैं। साथ ही दादी, बाबा व नाना को जो मेरी कविता पढ़ने के लिए अब नहीं हैं।

मेरी बात


कागज़ के टुकड़ों पर,
स्याही से,
लिखती हूँ मैं
दिल की दास्ताँ।
जो आता है दिल में
उतार देती हूँ,
उन्हीं कागज़ के टुकड़ों पर
दिल की दास्ताँ।
ये नहीं जानते
वे पढ़ने वाले,
क्या रहस्य है
उन चार पंक्तियों में।
जानते तो वे हैं
जो लिखते है,
उनका रहस्य
है उन्हीं के दिल में।
शायद इसी लिए लिखती हूँ मैं
कागज़ के टुकड़ों पर,
और दिल में छिपे वो तमाम रहस्य,
बताने की कोशिश करती हूँ।
-मौलिश्री


1.तितली रानी



तितली रानी बड़ी सयानी,
हरदम उड़ती रहती है।
मन हो जितना घूमा करती
फूलों के संग खेला करती।।

तितली रानी बड़ी सयानी
रंग-बिरंगे रंगो वाली
उड़ती रहती डाली-डाली
छोटी सी है तितली रानी।।

तितली रानी बड़ी सयानी,
नन्हें-नन्हें पखों वाली।
कहते-कहते उड़ती जाती
मैं हूँ इन फूलों की रानी।।

तितली रानी बड़ी सयानी,
सुन्दर-सुन्दर रंगों वाली।
दिन भर मस्ती में है रहती
छोटी सी है तितली रानी।।

2.आवाज़



आवाज़ भगवान की देन है प्यारी,
सबको लगती है ये न्यारी।
अजब गजब ये बात है,
देखो ये आवाज़ है।

आवाज़ से हम चिल्लाते हैं,
आवाज़ से ही खिलखिलाते हैं।
अगर आज आवाज़ न होती,
दुनिया इतनी खुशहाल न होती।

आवाज़ भगवान की देन है प्यारी,
सबको लगती है ये न्यारी।
देखो कैसी बात है,
देखो ये आवाज़ है।

3.सवाल



जहाँ देखो सवाल ही सवाल।
कुछ भी समझ मैं हूँ नहीं पाती,
मन में उठते कई सवाल।
कुछ ऐसे कुछ वैसे,
कोई बड़ा कोई छोटा,।
ऐसा क्यों ?
मैं इसका चाहती हूँ जवाब।
यह भी है एक सवाल कि
मैं क्या करती हूँ ?
इस सवाल का नहीं है कोई जवाब।
मेरे मन में उठते सवाल
क्यों कोई बड़ा, क्यों कोई छोटा,
क्यों कोई ऐसा क्यों कोई वैसा ?
जहाँ देखो सवाल ही सवाल।
क्यों कोई हँसता, क्यों कोई रोता
क्यों कोई मरता, क्यों कोई जीता,
कोई न देता इसका जवाब
जहाँ देखो सवाल ही सवाल।

4.अद्भुत संसार



यह कैसा अद्भुत संसार,
इसमें है दुख और उल्लास।
अलग-अलग है इसके नाम
देखो कैसा यह संसार।।

कोई जीता कोई मरता,
कोई हँसता कोई रोता।
कोई उठता कोई गिरता,
कोई अमीर है कोई गरीब।।

ईश्वर अल्लाह के सब आधीन,
जिसकी मर्जी से सब होता।
जो जैसा कर्म है करता,
वैसा फल उसको है मिलता।।

फिर भी देखो यह अद्भुत संसार,
इसमें भरा है प्यार ही प्यार।

5.भगवान्



भगवान् जी सबको प्यारे,
भगवान् जी सबसे न्यारे।
देखो कैसे अद्भुत भगवान्
वो सबसे है दयावान्।

सबके दुख सुख में वो रहते,
कभी इधर से, कभी उधर से
हर पल वो कुछ करते रहते।
सबके मन की बात वो जाने।
फिर भी बनते हैं अनजाने।
देखो कैसे है भगवान्,
वो सबसे हैं दयावान।

देखो कैसे न्यारे जी,
देखो कैसे प्यारे जी।
देखो कैसे हैं भगवान्
वो सबसे हैं दयावान।

6.आज का ज़माना



आज का ज़माना,
कितना खराब
हो गया है।
जहाँ देखो दंगा हो रहा है,
इससे ज़माना और भी,
गन्दा हो रहा है।
कल के ज़माने से,
आज के ज़माने की,
तुलना मत करो।
कल का ज़माना कुछ और था,
आज का ज़माना कुछ और है।
दिन-दहाड़े चोरी हो रही है।
ऊपर से सीना-जोरी हो रही है।
कितना कुछ बदल गया है,
नहीं-नहीं
ये कहो-सब कुछ,
बदल गया है।
अब हमको कुछ करना होगा,
ज़माने को बदलना होगा।

7.कविता-मेरी सच्ची साथी



कविता आखिर है क्या,
कैसे है ये बन जाती,
मुझको नहीं पता।
कैसे यह है लिखी जाती,
मुझको ये भी नहीं पता।
जब चल जायेगा पता,
तब तुमको दूँगी मैं बता।
कविता मेरी सच्ची साथी,
रहती मेरे साथ सदा।
यह मुझको है राह बताती,
मन आँखों में है छा जाती,
खुद ही कागज़ पर लिख जाती।
यह मुझको है बतलाती,
मैं हूँ तेरी सच्ची साथी।

8.मैं कौन हूँ



मैं कौन हूँ
मैं कैसे आयी,
किसके लिये आयी,
ये ऐसे सवाल हैं
जिसका जवाब आज तक
मैं नहीं जान पायी।
मैं कहाँ से आयी,
मैं कहाँ को जाऊँगी,
मैं नहीं जान पायी।
बनने की इच्छा है जो मेरी,
क्या मैं नहीं बन पाऊँगी,
मैं नहीं मान पायी।
कविता मेरी जिंदगी का पहलू,
इसके बिना नहीं रह पाऊँगी,
कविता जब लिखती हूँ मैं,
बढ़ाते हैं सब मेरा हौसला।
सब कुछ है मेरे पास,
सुख के पल भी आये,
दुख के पल भी आये,
हँसी मजाक की घड़ियां आयीं,
रुलायी की घड़ी भी आयी,
मुख पे उदासी भी छायी।
सब कुछ सह चुकी हूँ मैं,
सब कुछ कह चुकी हूँ मैं,
तुम मानो या न मानो,
यही है मेरा परिचय।
जो मिल गया,
उसी में खुश हूँ मैं।

9.छोटी सी एक लड़की



छोटी सी एक लड़की,
रोते हुए जा रही थी।
उस समय था सबेरा,
छाया हुआ था कोहरा।
सर्दी भी पड़ रही थी,
सर्द हवाओं के झोंके
गुनगुनाते हुए,
सरसराते हुए
आ रहे थे,
जा रहे थे।
ठण्डी हवाओं के झोंके
अपनी धुन में गा रहे थे।
फिर भी चली जा रही थी वह,
रोते-रोते।
रोते-रोते वह जा पहुँची
एक बाग में।
चारों ओर फूल ही फूल,
देखकर खिल उठा,
उसका चेहरा।
फूलों के संग यूँ लगी खेलने,
जैसे फूल भी खेल रहे हों।
फूलों के संग यूँ लगी बोलने
जैसे फूल भी बोल रहे हों।
यूँ छोटी सी एक लड़की
रोज सबेरे आती
फूलों के संग खेलकर जाती।
उस लड़की को ढेरों
दोस्त मिल गये।
उसके मुख पर रोना आता न था,
उसको खुशियों के खजाने
जो मिल गये।

10.हे प्रभु



हे प्रभु,
इस दुनिया का इन्साफ कर।
हे प्रभु,
इस दुनिया का सुधार कर।1।
हे प्रभु,
इस दुनिया का,
तू ही एक सहारा है।
इस दुनिया नामक सागर का,
तू ही एक किनारा है।2।
हे प्रभु,
जब-जब हैं आता संकट सब पर,
तू लेता अवतार यहाँ।
दूर है करता संकट सबका,
सबको है खुशहाल तू करता। 3।
हे प्रभु,
इस दुनिया का है तू रखवाला,
तू ही सब कुछ करने वाला।
हम बच्चों को राह बताना,
हम तेरे है सच्चे बंदे।4।

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