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नाटक-एकाँकी >> हानूश

हानूश

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2471
आईएसबीएन :9788126718801

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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।


जेकब : जी, मुझे आप अपने पास रख लीजिए। मैं आपके साथ काम करूँगा।

हानूश : मेरे पास अपने खाने को कुछ नहीं, तुम्हें क्या खिलाऊँगा? और फिर मुझे मालूम नहीं, मैं यह काम करूँगा भी या नहीं।

कात्या : (आगे बढ़कर) तुम इसे रख लो, हानूश!

हानूश : क्या कह रही हो कात्या?

कात्या : तुम इसे रख लो। लड़का समझदार जान पड़ता है।

हानूश : अभी-अभी तो कह रही थीं कि घड़ी बनाने का काम ही छोड़ दो और अब इस काम के लिए एक शागिर्द भी रख लूँ?

कात्या : तुम इसे रख लो! (जेकब से) तुम गाँव में लोहार के पास काम करते थे न?

जेकब : जी!

कात्या : क्या ताले बनाना जानते हो?

जेकब : ताले ? नहीं। गाँव का लोहार तो घोड़ागाड़ियों का काम करता था।

कात्या : (हानूश से) तुम इसे रख लो। तुम इसे ताले बनाना सिखा दो। इसे मैं ताले बनाने के काम पर लगा लूँगी। यह बनाएगा और मैं बेच आया करूँगी। तुम इसे रख लो।

हानूश : इसे खिलाओगी कहाँ से?

कात्या : इसकी तुम्हें क्यों चिन्ता होने लगी? मैं इसका प्रबन्ध कर लूँगी।

हानूश : तुम भी अजीब बातें करती हो, कात्या! अभी तो मुझे कोस रही थीं कि घड़ी की वजह से तुम्हारा घर बर्बाद हो गया और अब...?

कात्या : तुम इसे ताले बनाना सिखा दो, मैं इसे ताले बनाने के काम पर लगा लूँगी। तुम इसे रख लो।

हानूश : अपने खाने का ठिकाना नहीं, इसे कहाँ से खिलाओगी? और मैंने कह जो दिया है कि मैं घड़ी के काम में अब हाथ नहीं डालूँगा।

ऐमिल : कात्या ठीक कहती है, यह आदमी तुम्हारे काम आएगा। (जेकब से) चलो, मैं तुम्हें लोहार से मिला दूँ। आज रात तुम उसी के यहाँ रहोगे। कल चले आना। (यान्का से) यान्का; तुम भी चलो मेरे साथ। मैं तुम्हें घर के लिए थोड़ी रसद दूँगा। वह लेती आना।

[ऐमिल, जेकब और यान्का का प्रस्थान]



कात्या : सुनो, हानूश! मैं जानती हूँ, तुम काम नहीं छोड़ोगे। मैं घर की दो जून रोटी का तो इन्तज़ाम करूँ। तुम मुझे कब समझोगे, हानूश? मेरा बस चले तो मैं घर की सारी देखभाल अपने सिर पर ले लूँ। यह थोड़ा-सा ताले बनाने का काम भी जो तुम पर बोझ है, तुम पर से हटा लूँ और तुम्हें खुला छोड़ दूँ, फिर जो मन में आए, करो। मुझसे पूछो तो तुम्हारा ब्याह करना ही भूल थी। ब्याह करके न तुमने सुख पाया, न मैंने।

हानूश : क्या तुम सचमुच मेरे साथ बहुत दुखी रही हो, कात्या?

कात्या : इस तरह से मुँह लटका लेने से क्या लाभ? मैं जानती हूँ, तुम दिल के बुरे नहीं हो। पर तुम्हारी यह अच्छाई हमारे किस काम की? मैं तुम्हें सच-सच बताऊँ हानूश?

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