नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
[नगरपालिका का हॉल कमरा। इसे हम द्वितीय अंक के पहले दृश्य में देख चुके हैं। केवल इसकी सज-धज पहले से कहीं ज़्यादा है। अलग-अलग दस्तकार संघों के चिह्न-चित्र, पीछे बड़ी खिड़कियों में से नगर का दृश्य। दूर, बड़े गिरजे की मीनार, छतें। सुनहली धूप। समारोह का-सा वातावरण...। दो-दो, एक-एक करके नगरपालिका के सदस्य इकट्ठे हो रहे हैं। जगह-जगह चोबदार, कारिन्दे, संयोजक व्यस्त हैं। नगरपालिका के सदस्यों में से बहुत-से ऐसे हैं जिनसे हम द्वितीय अंक के पहले दृश्य में मिल चुके हैं।
नगरपालिका का अध्यक्ष, हुसाक, बग़ल में बहुत-से काग़ज़ दबाए, जान के साथ बात करता हुआ दाख़िल होता है।]
हुसाक : वह भी हम सँभाल लेंगे। इसका भी इन्तज़ाम हो जाएगा। ठीक ढंग से काम किया जाए तो रास्ता निकल आता है। (व्यापारी के लिए) क्या मुश्किल है! सियाने कहते हैं, मुट्ठी-भर मिट्टी भी उठानी हो तो बड़े ढेर में से उठाओ, छोटे में से नहीं।
जान : मैं तो कहूँगा, तुम महसूल चुंगी की भी बात आज ही उठाओ। इसमें देरी नहीं करो। क्यों, क्या कहते हो?
हुसाक : नहीं, आज नहीं, इसके लिए थोड़े दिन रुक जाना ठीक होगा। आज सिर्फ इतना कहो कि शहर में दाखिले की चुंगी बढ़ा दी जाए। बस, इतना ही काफ़ी है।
जान : जब से घड़ी की ख़बर फैली है, लोग दूर-दूर से आने लगे हैं। आज कुछ नहीं तो एक हज़ार आदमी बाहर से आए हैं।
हुसाक : (उपाध्यक्ष, जार्ज से) सब इन्तज़ाम ठीक हो गया?
जार्ज : हाँ!
हुसाक : हानूश कुफ़्लसाज़ के लिए गाड़ी भेज दी?
जार्ज : सुबह ही भिजवा दी थी।
[पीछे की ओर, नीचे, आवाजें, तालियाँ]
हुसाक : बादशाह सलामत आ गए!
[घबराकर चुगा ठीक करता है, नीचे जाने के लिए मुड़ता है।]
जल्दी नीचे पहुँचो।
टाबर : (जो खिड़की के पास खड़ा है) नहीं, नहीं, महाराज नहीं हैं, यह तो हानूश कुफ़्लसाज़ है।
[नीचे तालियाँ और शोर]
बाहर भीड़ बहुत है।
हुसाक : (जार्ज से) जो दस्तकार रास्ते में महाराज का स्वागत करने के लिए खड़े किए हैं, उनसे कह दिया न, कि महाराज के लौटने तक वहीं खड़े रहें? यह नहीं हो कि भागकर इधर आ जाएँ, या मुड़कर अपने घरों को चले जाएँ। बादशाह सलामत की सवारी के लौटने तक वहीं खड़े रहें।
जार्ज : सब समझा दिया है।
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