नाटक-एकाँकी >> माधवी माधवीभीष्म साहनी
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प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है
ययाति : हाँ, हाँ, मैंने तुम्हें दानस्वरूप दे दिया है। तुम्हारे माध्यम से इस युवक की प्रतिज्ञा पूरी होगी।
गालव : स्तम्भित और अभिभूत
महाराज !
ययाति : इससे बढ़कर मैं कुछ नहीं कर सकता, मुनिकुमार। इससे तुम्हारा मनोरथ पूरा हो जायेगा।
ठिठककर
युवक, लगता है तुम्हें अभी भी विश्वास नहीं है कि मेरी पुत्री के माध्यम से तुम्हें आठ सौ अश्वमेधी घोड़े मिल सकेंगे।
गालव : महाराज''मैं...
ययाति : राजज्योतिषियों ने माधवी के लक्षणों की जांच की है। इसके गर्भ से उत्पन्न होनेवाला बालक चक्रवर्ती राजा बनेगा। सुना मुनिकुमार? ऐसे लक्षणोंवाली युवती को पाकर कोई भी राजा तुम्हें घोड़े दे देगा। माधवी को पाकर वह धन्य होगा। तुम निःसंकोच इसे ले जाओ।
गालव : महाराज ! ययाति : इसे और भी अनेक वर प्राप्त हैं। इसे चिर कौमार्य का वर प्राप्त है । तुम्हें स्वयं पता चल जायेगा।
माधवी : यह क्या है, पिताजी, क्या आप नहीं चाहते कि मैं आपके साथ रहूँ?
ययाति : बेटी, यज्ञ में दी जानेवाली आहुति साधारण आहुति नहीं होती।
[नेपथ्य में : दानवीर ययाति की जय हो!]
स्वतः मानो देवलोक से आवाज आयी है। देवता प्रसन्न हुए ! जाओ मुनिकुमार, तुम्हारा मनोरथ पूरा हो।
माधवी : आज माँ होती तो क्या वह भी मुझे इस तरह दान में दे देतीं !
ययाति : इस समय मेरा धर्म ही सर्वोपरि है, माधवी।
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