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होम्योपैथी चिकित्सा

एम.बी.एल.सक्सेना

प्रकाशक : प्रतिभा प्रतिष्ठान प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :292
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2629
आईएसबीएन :81-88266-41-8

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प्रतिष्ठित एवं विख्यात होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एम. बी. एल. सक्सेना द्वारा होम्योपैथी चिकित्सा के संबंध में विस्तृत एवं व्यावहारिक जानकारी...

Homiyopaithi Chikitsa

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आमुख

लगभग तीस वर्षों तक होम्योपैथी उपचार करने के दौरान मुझे आम आदमी के रोगों और परेशानियों का व्यापक अनुभव हुआ। यह स्पष्ट था कि काफी धन खर्च करने के बावजूद रोगी अन्य चिकित्सा-प्रणालियों से संतोषजनक चिकित्सा प्राप्त नहीं कर पा रहे थे, इनसे उन्हें निराशा होती थी। इस बात ने मुझे अधिक चिंतित किया।

मेरे मित्र और पुरानी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों को मेरे पास लाए, जिन्हें अन्य चिकित्सा-प्रणालियों द्वारा असाध्य घोषित किया जा चुका था। लेकिन डॉ. सैमुअल हैनिमन और उनकी होम्योपैथी चिकित्सा-प्रणाली की बदौलत मैं पुराने रोगियों को ठीक कर सकता था। मेरे इलाज से ऐसे रोगियों को संतुष्टि प्राप्त हुई और होम्योपैथी चिकित्सा-पद्धति में उनका विश्वास दृढ़ हो गया। उन्होंने मुझसे बार-बार यह भी पूछा कि क्या उनकी बीमारियों के अलावा अन्य बीमारियाँ भी होम्योपैथी चिकित्सा से ठीक हो सकती हैं ?

चिकित्सक के रूप में मैंने अपने पास आनेवाले रोगियों का मार्गदर्शन और उपचार अपना दायित्व समझकर किया है। आम लोगों की परेशानियों को देखते हुए और उन्हें रोगों से छुटकारा दिलाने के लिए मैंने इस पुस्तक को सरल और और सुगम भाषा में लिखने का प्रयास किया है।

यह पुस्तक होम्योपैथी संबंधी मेरे गहन अध्ययन और अनुभवों का परिणाम है। इसका एकमात्र उद्देश्य रोगियों का आसान और सस्ता उपचार करना है। यह पुस्तक होम्योपैथी चिकित्सक के लिए भी संदर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी रहेगी।
पुस्तक को अधिकाधिक उपयोगी बनाने के लिए मैंने अनेक होम्योपैथी ग्रंथों का लाभ उठाया है और प्रतिष्ठित होम्योपैथी विशेषज्ञों के अनुभवों, अध्ययन तथा शोधों को इसमें शामिल किया है।

चूँकि आम आदमी रोगों को उनकी प्रकृति से ही समझता है, इसलिए पुस्तक में रोगों के नाम भी दिए गए हैं। प्रस्तुत उपचार पूरी तरह से रोगों की विशेषताओं और विचित्र लक्षणों पर आधारित हैं, जिनमें होम्योपैथी के सिद्धांतों का ध्यान रखा गया है। दवाओं की उपयुक्त पोटेंसी का भी सुझाव दिय़ा गया है। कुछ मामलों में उस विशेष रोग के लिए उपचार के तरीके दिए गए हैं; लेकिन अनय मामलों में संबंधित रोगी के इतिवृत्त, जैसे-आयु, प्रकृति, सहनशक्ति, आदतों और वातावरण के आधार पर उपचार या दवाओं की पोटेंसी को परिवर्तित किया जा सकता है।

जन-सामान्य में आम धारणा यह है कि होम्योपैथी दवाओं को किसी प्रकार की प्रतिक्रिया (रिएक्शन) के डर के बिना लिया जा सकता है। अपने अनुभवों के आधार पर मुझे यह उचित प्रतीत नहीं होती है। अत: मेरा सुझाव है कि होम्योपैथी दवा के इस्तेमाल को तभी दुहराएँ, जब रोग के लक्षण बने रहें।
मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि इस पुस्तक को पढ़नेवाले हर व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त हो।

-डॉ. एम.बी.एल. सक्सेना

भाग-1
पेट के रोग


*   गरिष्ठ भोजन के बाद पेट फूलना - नक्स वोमिका 30 - तीन दिनों तक दिन में तीन बार और चौथे दिन पल्सेटिला 200 एक खुराक प्रतिदिन लें।
*    पेटदर्द, पेट से वायु निकालने के लिए - कैल्सकेरिया फॉस्फोरिका 6 - दिन में तीन बार।
*    अप्राकृतिक चीजें, जैसे चॉक, मिट्टी, कोयला इत्यादि खाने की इच्छा - कैल्केरिया फॉस्फोरिका 12 एक्स - रोजाना तीन बार।
*    भूख में कमी - केरिका पपाया 30 - हर चार घंटे पर।
*     प्लीहा की बाईं ओर दर्द, पेट में लगातार दर्द - सियोनेंथस - क्यू की दो से पाँच बूँदें, दिन में दो बार।
*     पेट में गड़गड़ाहट, पेट फूल जाता हो - थुजा 30 - दिन में दो बार।
*     बच्चों का पेट बढ़ना - सल्फर 1 एम - दो सप्ताह में एक बार, केवल सुबह के समय।
*     पेट की वायु तथा यकृत (लीवर) में हुए संक्रमण के कारण उत्पन्न पेट के रोग - मल-त्याग तथा पेट से अपानवायु निकलने पर आराम मिलता है- नेट्रम आर्सेनिकम 30 - दिन में तीन बार।
*     उदरशूल (तेज पेटदर्द), गरम सिंकाई से आराम - मैग्नीशिया फॉस्फोरिकम 12 - एक्स हर घंटे।
*     अम्लता (एसिडिटी), सभी खाद्य पदार्थ खट्टे और अप्रिय लगते हैं; जलन में पानी पीने से अस्थायी राहत मिलती है - सेनिक्यूला 30 - दिन में तीन बार।
*     अत्यधिक अम्लता, जीभ के पिछले हिस्से पर पीली परत, खट्टी डकार और वमन - नेट्रम फॉस्फोरिकम 30 - छह-छह घंटे पर।
*     अम्लता, पेट में खट्टापन महसूस होना, दाँतों को खट्टा बनाने वाला वमन - रोबिना 30 - दिन में दो बार।
*     अम्लता, सीने में जलन, खट्टी डकार और वमन, एलोपैथिक दवाओं में मैग्नीशिया के इस्तेमाल के कारण - मैग्नीशियम कार्बोनिका 6 - दो सप्ताह में एक बार लें।
*     खट्टी डकार, वमन, कलेजे, की जलन के साथ अम्लता - लाइकोपोडियम 30 - दिन में एक खुराक।
*     तीव्र पेचिश - मरक्यूरियस कोरोसिवस 6 या कोलोसिंथ 6 या दोनों अदल-बदलकर दिन में दो दो बार।
*     पेट में जलन, खाने के बाद राहत मिलती है - फॉस्फोरस 200 - एक खुराक।
*     विशिष्ट डायरिया के साथ होनेवाले रोग - क्रोटन टिंगलम 30 - दिन में तीन बार।
*    पेट में मरोड़, तेज दर्द, हिचकी, पानीदार वमन, ऐंठन, चलने का प्रयास करने पर कंपन, पैरों की पिंडलियों में मरोड़, मध्य रात्रि के बाद अधिक तेज, बिस्तर से उठकर खड़े होने पर राहत महसूस होना - क्यूप्रम आर्सेनिकम 200 - एक खुराक प्रतिदिन।
*     बहुत तेज मिचली, वमन, ठंडा पसीना और अत्यन्त बेचैनी - लॉबीलिया इन्फ्लेटा 6 - दिन में तीन बार।
*     कमजोरी और दुर्बलता, लीवर का बढ़ना - इंसुलिन 3 एक्स - एक खुराक प्रतिदिन।
*     अपेंडिसाइटिस, बाहर से महसूस किया जा सकता है, दाएँ भाग में अत्यन्त पीड़ा - बैप्टीसिया टिंक्टोरिया 3 एक्स - दिन में तीन बार या दिन में एक बार।
*     अपेंडिसाइटिस, दाएँ भाग में दर्द, चमड़ी छूने तक से अधिक दर्द - बेलाडोना 3 एक्स - दिन में दो बार।
*    क्षुधा-विकार - नेट्रम फॉस्फोरिकम 30 - दिन में तीन बार।
*  भूख में कमी तेजी से दूबले होते जाना और वमन - आयोडियम 30 - दिन में दो बार।

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