कविता संग्रह >> दाना चुगते मुरगे दाना चुगते मुरगेयू. के. एस. चौहान
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इस संग्रह को पढ़ते समय आज का संसार आदमियों की जगह कुत्ते, सियारों, बंदरों, मुरगों जैसे पशु-पक्षियों से भरे एक जंगल की तरह दिखाई पड़ता है, जिन्हें सिर्फ प्रतीक न समझकर यदि एक नए ‘पंचतंत्र’ की तरह पढ़ें तो एक प्रकार के नए सत्य का साक्षात्कार होगा।
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