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नाटक-एकाँकी >> बिना दीवारों के घर

बिना दीवारों के घर

मन्नू भंडारी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2782
आईएसबीएन :81-7119-759-0

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स्त्री-पुरुष के बीच परिस्थितिजन्य उभर जाने वाली गाँठों की परत-दर परत पड़ताल करने वाली नाट्य-कृति.....


अजित : (व्यंग्य से) बड़प्पन? हूँ।

(भीतर से नौकर का प्रवेश)

नौकर : अप्पी बिटिया जग गई, रो रही हैं। उनका माथा तो बड़ा गर्म हो रहा है।

(जीजी एकदम उठकर भीतर जाती हैं। पीछे-पीछे अजित भी जाता है। कछ देर रंगमंच खाली रहता है। फिर भीतर से जीजी आती हैं। टेलीफ़ोन उठाकर नम्बर मिलाती हैं।

जीजी : हलोऽ। जी, ग्यारह नम्बर के कमरे में दीजिए। हलोऽऽ। कौन शोभा? मैं जीजी बोल रही हूँ शोभा। देखो, अप्पी का बुखार तेज हो गया है। उठते ही ममी-ममी करके रो रही है। अपनी बच्ची की ख़ातिर ही तुम आ जाओ शोभा। एक बार उसकी हालत देख जाओ, फिर जो भी तुम्हारी समझ में आए करना।-हाँ, तुरन्त आओ! अजित को मैं डॉक्टर को लेने के लिए भेज रही हूँ-तुम तुरन्त आओ!

(टेलीफ़ोन रखकर भीतर चली जाती हैं। भीतर से अजित का प्रवेश। बाहर जाने के लिए तैयार होकर आया है। मेज़ से गाड़ी की चाबी उठाता है। नौकर आता है।)

नौकर : मालकिन ने कहा है आते समय मौसमी भी लेते आइए एक दर्जन!

अजित : ठीक है!

(अजित का प्रस्थान। जीजी आती हैं।)

जीजी : साहब चले गए?

नौकर : अभी-अभी निकले हैं।

जीजी : अरे, ग्लूकोस की कहना ही भूल गई। तू ला सकेगा?

नौकर : नाम लिख दीजिए तो ला सकेंगे, बाकी-

जीजी : हाँ-हाँ लिखे देती हूँ। (भीतर जाती है। पीछे-पीछे नौकर भी चला जाता है।) (शोभा का प्रवेश। एक क्षण को कमरे में चारों ओर देखती है, फिर भीतर के दरवाजे की ओर बढ़ती है। दरवाज़े पर ज़रा-सा ठिठक जाती है फिर पर्दा खोलकर जाती है। भीतर से नौकर का प्रवेश। बाहर से अजित और डॉक्टर का प्रवेश।)

नौकर : बीबीजी आ गईं सरकार। बस तुरत ही आई हैं।

(अजित हल्की-सी दुविधा में रहता है कि भीतर जाए या नहीं, फिर डॉक्टर को लेकर चला जाता है। नौकर भी डॉक्टर का बैग लेकर पीछे-पीछे जाता है, फिर लौट आता है। गद्दी आदि ठीक करता है सोफे पर पड़ा अजित का बैग उठाकर ठीक जगह रखता है। भीतर से अजित और डॉक्टर का प्रवेश।)

डॉक्टर : चिन्ता की कोई बात नहीं है, मामूली बुखार है। मैं दवाई लिखे देता हूँ-ठीक हो जाएगी। (बैठकर दवाई लिखता है) तीन-तीन घंटे में इसे दीजिए। खाने को अभी रस या साबूदाना आदि ही दीजिए-और तो बस।

(अजित फ़ीस देता है। दरवाजे तक छोड़कर लौट आता है।)

अजित : (नौकर से) यह दवाई लेते आओ।

(बटए में से रुपए देता है। नौकर का प्रस्थान। भीतर से जीजी आती हैं।)

जीजी : गए डॉक्टर साहब? क्या बताया?

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