बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1 युद्ध - भाग 1नरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास
तभी पच्चीस नवयुवकों की अगवानी करते हुए हनुमान राम के पास आए, "भद्र। ये नवयुवक आपकी सेवा में कुछ निवेदन करना चाहते हैं।"
राम ने अपने आंसू पोंछकर उनकी ओर देखा, "कहो मित्र।"
"आर्य। हमें आर्य संपाति ने भेजा है।"
"विभीषण के मंत्री संपाति ने?"
"नहीं आर्य।" युवक गंभीर स्वर में बोला, "गिद्ध-श्रेष्ठ जटायु के बड़े भाई संपाति ने। उन्होंने कहा है कि अंधकार के विरुद्ध युद्ध में हम गृध्र जाति के योगदान के रूप में ग्रहण किए जाएं-।"
"भद्र राम।" हनुमान अत्यंत कोमल स्वर में बोले, "कदाचित् आप को स्मरण हो, देवी वैदेही की खोज में जब हम गए थे तो सागर तट पर आर्य संपाति से हमारी भेंट हुई थी। उन्होंने ही देवी वैदेही कें लंका में होने की निश्चित सूचना हमें दी थी और अपने भाई जटायु की मृत्यु पर क्षुब्ध होकर उन्होंने हमें वचन दिया था कि वे प्रयत्न करेंगे कि जब कोई सेना रावण के विरुद्ध लड़ने जाए, उसमें एक टुकड़ी गिद्ध युवकों की भी हो।"
"धन्य हैं आर्य संपाति।" राम बोले।
"आर्य! हमें खेद है कि आने में हमें विलंब हुआ।"
"खेद के लिए कोई अवकाश नहीं है मित्र!" राम का स्वर कुछ दृढ़ हो गया, "अभी तो अन्तिम युद्ध होना है।"
"हम संख्या में कम हैं आर्य। किंतु हम आर्य जटायु के बलिदान को लज्जित नहीं होने देंगे।"
"तुमसे ऐसी ही आशा है वीर।" राम ने उसके कंधे पर हाथ रखा, "नाम क्या है तुम्हारा?"
"तेजधर।"
"तेजधर?"
"आपको आश्चर्य हो रहा है?"
"हां मित्र।" राम का स्वर भावुक हो आया, "जिस वीर टुकड़ी की चिता के पास हम खड़े हैं उसके नायक का नाम भी तेजधर ही था। लगता है कि तेजधर किसी व्यक्ति-विशेष का नाम नहीं है, यह तो बलिदान की एक परंपरा की संज्ञा है।"
"आर्य। हम इस संज्ञा की लाज निभाएंगे।"
"मेरी कामना है कि तुम उसमें समर्थ हो सको।" राम बोले, "जाओ। अब विश्राम करो यात्रा से थके आए हो।"
राम मुड़े तो एक अन्य आगंतुक वाहिनी के नायक ने आकर उनका अभिवादन किया। उसके साथ एक महिला भी खड़ी थी।
"बंधु सिंहनाद।" राम ने उसे बांहों में भर लिया, "देवी प्रभा! बहुत समय से आए तुम लोग।"
"माता लौपामुद्रा के पुत्री-मोह ने हमें कुछ विलंब करा दिया आर्य।" प्रभा धीरे से बोली।
"फिर भी बहुत समय से पहुंची हो।" राम का स्वर पुनः आर्द्र हो उठा, "सैनिकों की भी हमें बहुत आवश्यकता है, किंतु तुम्हें कैसे बताऊं बहन, कि शल्य चिकित्सक हमारे लिए कैसी संजीवनी है। अकेले वृद्ध योद्धा तात सुषेण पर बहुत बोझ था। कल के युद्ध में हमें तुम्हारी बहुत आवश्यकता है।"
"अच्छा प्रिय।" प्रभा ने सिंहनाद को देखा, "तुम शिविर स्थापित करो, मैं चिकित्सा शिविर में पहुंचू।"
"तुम वस्तुतः ऋषि अगस्त्य की आत्मजा हो!" राम धीरे से बोले।
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