बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1 युद्ध - भाग 1नरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास
रावण ने महोदर, महापार्श्व और विरूपाक्ष को बुला भेजा। उनके आने पर सैनिक अभियान की रूप-रेखा तैयार की। वे तीनों और रावण अपनी-अपनी सेनाओं के साथ लंका के एक-एक द्वार से बाहर निकलेंगे और आमृत्यु युद्ध करेंगे। अनिर्णीत युद्ध में जीवित रहते हुए, वापस लौटने का कोई अर्थ नहीं था। या तो राम-लक्ष्मण का वध कर वापस लौटेंगे, अथवा लंका में उनका रथ ही लौटेगा।
विरूपाक्ष अत्यंत उत्साहित था, किंतु रावण को महोदर और महापार्श्व में युद्ध का विशेष उत्साह दिखाई नहीं पड़ा।
"तुम युद्ध करना नहीं चाहते? रावण की भृकुटी वक्र हो उठी।"
"युद्ध!" महोदर ने महापार्श्व की ओर देखा, "युद्ध में तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, किंतु सेना-।"
"हां। सेना!" महापार्श्व ने दुहराया।
"क्यों सेना को क्या हुआ?" रावण क्रुद्ध हो उठा, "क्या लंका की सेना युद्ध नहीं करना चाहती?"
"नहीं। सेना युद्ध को मना तो नहीं कर रही-।"
"महाराजाधिराज क्षमा करें?" महापार्श्व कुछ साहस कर बोला, "सेना हमारे पास है ही कहां?" रावण ने चकित दृष्टि से महापार्श्व को देखा, जैसे वह विक्षिप्त हो गया हो।
"लंका के असंख्य सैनिकों ने वीरगति पाई है।" इस बार महापार्श्व कुछ धैर्य से बोला, "असंख्य सैनिक लंका के सैनिक-असैनिक चिकित्सालय के भीतर-बाहर पड़े हैं। हमारे आहत सैनिकों की संख्या इतनी अधिक है कि चिकित्सालयों के द्वारों और चौखटों में लेटाकर भी उन्हें अटा पाना कठिन हो रहा है-।" उसने रुककर क्षण भर को रावण को देखा, "और यह स्थिति तब है, जब हम हताहतों को युद्ध-भूमि से उठा लाने का प्रबंध नहीं करते हैं। हमारे प्रबंधकों को जब भी अवसर मिलता है, वे युद्ध-क्षेत्र सें राक्षस सैनिकों के शवों को उठाकर समुद्र में डाल आते हैं। यदि वानर सेना के समान अपने मृत सैनिकों का अग्नि-संस्कार करने लगें तो लंका की गृहणियों को ईंधन के लिए लकड़ी नहीं मिलेगी-"
रावण उठकर खड़ा हो गया और व्यग्रता में इधर-से-उधर टहलने लगा, "मुझे बताया क्यों नहीं गया?"
"आपको कौन बताता? आप कटु सत्य सुनना नहीं चाहते। और फिर इसमें बताने के लिए क्या है। यह तो समझने की बात है। प्रत्येक पराजित सेना की यही स्थिति होती है।"
"क्या हमारे स्कंधावार में कोई नहीं है?"
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