बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1 युद्ध - भाग 1नरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास
"सौमित्र को चिकित्सा-शिविर में ले जाओ।" राम ने आदेश दिया और जलती हुई आंखों से रावण की ओर देखा।
उन्होंने संकेत से एक-के-पश्चात् एक कर शस्त्र पकड़ाने वाले चार चरों को निकट आने को कहा।
राम के धनुष से बाणों की झड़ी लग गई। रावण अपने सारथि और घोड़ों के अभाव में अपने स्थान से तनिक भी हिल नहीं पा रहा था। रथ उसके लिए सुविधा के स्थान पर संकट का कारण बन गया था। वह जिस ओर झुकता था, राम के बाणों की दिशा उधर ही घूम जाती थी...
असहाय रावण ने इधर-उधर देखा। उसकी सेना पूर्णतः अस्त-व्यस्त हो चुकी थी। यदि व्यवस्था इस प्रकार भंग न हो गई होती, तो अब तक उसके लिए दूसरा रथ आ जाना चाहिए था।
'दूसरा रथ लाओ।" उसने पलटकर अपने पृष्ठ-पुरुषों को संबोधित किया, "तुम युद्ध-भूमि में खड़े हो या अपने विश्राम-कक्ष में मूर्खों।"
"राजाधिराज! मार्ग अवरुद्ध हैं।" एक पृष्ठ-पुरुष चिल्लाया, "वानरों ने हमारी कोई भी पंक्ति सीधी नहीं रहने दी है।
"रथ लाओ?" रावण क्रोध में फुंफकारता हुआ बोला।
रावण का नया रथ आ गया।
क्षण भर के लिए राम हतप्रभ रह गए। वानर सेना रावण के रथों को तोड़ती रही और उसके नये रथ आते रहे, तो न रावण का वध होगा न युद्ध का निर्णय होगा...फिर रथ के कारण, रावण को कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मिल जाती हैं। उसकी गति बढ़ जाती है। वह ऊंचाई पर स्थित होता है। उसे शस्त्र पकड़वाने वाले चरों की आवश्यकता नहीं होती...इतनी कठिनाई से एक रथ नष्ट किया था। राम का ध्यान अपने झपटते हुए सैनिकों की ओर चला गया। वे लोग रावण के परित्यक्त रथ के शस्त्रों पर अधिकार कर रहे थे। उस चिंता में भी राम के अधरों पर एक क्षीण-सी मुस्कान आ गई...। अब अनेक स्थानों पर वानर, राक्षसों से छीने हुए शस्त्रास्त्रों से ही युद्ध कर रहे थे।
सहसा वानरों की पिछली पंक्तियों में कुछ असामान्य-सी हलचल फैल गई। राम का ध्यान भी उधर गया। लगा जैसे कोई असाधारण रूप से बड़ा रथ, पिछली ओर से वानर सेना की पंक्तियों को रौंदाता हुआ आगे बड़ा चला आ रहा है...। राक्षसों का रथ वानरों के पीछे कैसे पहुँच गया-राम सोच रहे थे...रावण तो उनके सम्मुख खड़ा था, फिर इतना विराट रथ दौड़ाने वाला कौन-सा योद्धा होगा-इस रथ के विषय में संदेशवाहकों ने भी कोई सूचना नहीं दी थी...
राम ने रावण की ओर देखा : किंतु उसके चेहरे पर उन्हें कोई प्रसन्नता दिखाई नहीं पड़ी...वरन् रावण जिज्ञासु से अधिक चिंतित ही लग रहा था...तो क्या रावण भी नहीं जानता कि वह कौन है?...युद्ध जैसे स्थगित हो गया था सबके ध्यान का आकर्षण वह रथ ही बना हुआ था..।
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