" />
लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

Like this Hindi book 16 पाठकों को प्रिय

388 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास

"कैसी-बातें करते हैं आर्य आप!" वह हंसा, "हमने आपको वचन दे रखा है कि आपके आदेश पर हम स्वयं को अपनी नौकाओं समेत सागर में डुबो देंगे।"

"आज तुम्हें वैसा ही आदेश दे रहा हूं।" राम के स्वर का माधुर्य विलीन हो गया। वे आकर नाविकों के बीच में खड़े हो गए, "साथियों अब जोखिम का क्षेत्र आरम्भ हो रहा है। जलमग्न शिलाएं हमारे चप्पुओं को रोकने लगी हैं। थोड़ी देर वे तुम्हारे जलपोत को भी रोकेंगी। पर हमारा पोत रुकना नहीं चाहिए। एक बार रुक गया तो हमें कठिनाई होगी। हमें पोत को इतने वेग से चलाना है कि वह जलमग्न पर्वत-खंड से न केवल टकरा जाए, वरन् उस पर जा चढ़े और इस घर्षण में टूट जाएं। हमारे पोत के सारे पत्थर उस जलमग्न पर्वत पर एक दूसरा पर्वत बना सकें। ...स्वीकार है?"

"स्वीकार है।" नाविको ने उत्तर दिया।

"तो चलो।" राम ने एक चप्पू पकड़ा और जाकर सब के आगे बैठ गए, "किंतु याद रखना, पोत के डूबने से पहले तनिक भी नहीं डिगना है; और पोत के टकराते ही स्वयं अपनी रक्षा करनी है। साथ चलने वाली नौकाओं तक पहुंचना है। पोत को बचाने का तनिक भी प्रयत्न नहीं करना है। उसे हम स्वयं नष्ट कर रहे हैं।"

पोत पहले से भी अधिक वेग से बढ़ा और अभी पचास हाथ भी नहीं गया होगा कि उसका कोई भाग किसी कठोर वस्तु से जा टकराया और सारा पोत डोल गया।

"बढ़ते चलो।" राम ने उच्च स्वर में कहा।

लगा, जैसे पोत डगमगाया न हो, अपने लक्ष्य को पा गया हो। नाविकों का उत्साह और भी बढ़ गया और साथ ही पोत की गति भी। दूसरी टक्कर लगने में अधिक समय नहीं लगा। वस्तुतः इस बार टक्कर का-सा अनुभव ही नहीं था। किसी ने पोत को नीचे से पकड़ कर जैसे रोक लिया था, या पोत किसी पहाड़ी पर चढ़ा था और रुक गया था।

कुछ क्षणों तक कोई भी नहीं समझ सका कि क्या हो गया है और उन्हें क्या करना है। किंतु, स्थिति स्पष्ट होने में अधिक समय नहीं लगा, जलपोत अनेक स्थानों से भंग हो चुका था। और जल बड़े वेग से पोत में प्रवेश कर रहा था। उसे डूबने में अधिक समय नहीं लगने वाला था...

"नौकाओं पर चलो।" राम ने उच्च स्वर में आदेश दिया; और स्वयं भी जल में उतर गए। उन्होंने पोत का एक चक्कर लगाया और नाविकों को नावों में चढ़ते हुए देख कर स्वयं भी एक नौका में आ गए।

"सागरदत्त। अपनी नौकाओं को पिछले तीन पोतों के मार्ग में से हटा लो।"

राम ने अपने डूबते पोत को देखा। वह अपने भारी पत्थरों के साथ क्रमशः जल में धंस रहा था। थोड़ी देर में पोत डूब गया, किंतु, स्तिया पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पीछे-पीछे दूसरा पोत भी आ पहुंचा था। राम ने उसे भी उसे स्थान पर ले जाने का संकेत किया, जहां पहला पोत जल में डूबा था। दूसरे पोत के साथ भी वही हुआ, जो पहले के साथ हुआ था। किंतु, सब ने आश्चर्य से देखा कि दूसरा जलपोत पूरा नहीं डूब पाया है। उसके मस्तूल अब भी ऊपर दिखाई पड़ रहे थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai