" />
लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

Like this Hindi book 16 पाठकों को प्रिय

388 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास

"मेरा जेठ!" सरमा दबे स्वर में हंसी, "वानर सेना के आ जाने से घबरा गया होगा बेचारा। उसी घबराहट में, शस्त्र से राम को जीतने के स्थान पर, मिथ्या बकवाद से सीता को जीतने चला आया...। अभी युद्ध आरम्भ नहीं हुआ। राम पूर्णतः सकुशल हैं और युद्ध की तैयारी में संलग्न हैं।" सरमा एक क्षण के लिए रुककर बोली "रावण और लंका की स्थिति यह है मेरी बहना कि भाई को शत्रु पक्ष से लड़ने आया देख, रावण ने हम मां-बेटी पर सैनिक पहरा बैठा दिया है। हमारा प्रासाद सैनिक अवरोध में है। किंतु, लंका में यह तथ्य भी बहुत प्रचारित है कि जिसके एक वानर ने आकर राजाधिराज के पुत्र का वध कर, अशोकवाटिका उजाड़, लंका जला दी थी उस राम ने विभीषण को लंकापति घोषित किया है...। युद्ध का परिणाम अभी अनिश्चित है; किंतु यदि विजय राम की हुई तो विभीषण लंकापति होंगे। अतः उनके परिवार के साथ कठोर व्यवहार करने वाला लंका में सकुशल नहीं रह पाएगा। इसलिए सैनिक अवरोध होने पर भी मैं अशोक वाटिका जैसे निषिद्ध स्थान पर आने में सफल हो पाई हूं...हां। लंका से बाहर निकलना मेरे लिए असंभव है...।"

"तुम्हें भय नहीं लगता बहन?"

"पूर्ण निर्भय तो नहीं हो सकती।" सरमा बोली, "किंतु भय भी कब तक करूं! अब जो होना वह होगा। तुम्हारा और मेरा भाग्य अब एक ही है-डूबेंगे तो एक साथ, तैरेंगे तो एक साथ।"

"ठीक कहती हो बहन!" सीता मुस्करा पड़ी, "किंतु लंका की प्रजा क्या सोचती है?"

"शोषित जनता राम की सेना का स्वागत करने को तैयार बैठी है। शोषकजन शांतिप्रियता के नाम पर लंका से निकल भागने के अवसर की खोज में हैं। रावण पर उसके परिवार के भीतर और बाहर से अनेक प्रकार के दबाव पड़ रहे हैं कि वह सीता को लौटाकर राम से समझौता कर ले। किंतु वह कामासक्त हैं। तुम्हें लतटाएगा नहीं। युद्ध होगा।"

"जब रावण का इतना विरोध है तो लड़ेगा कौन?"

"सेना लड़ेगी!" सरमा का स्वर बाहर से आते कोलाहल में डूब गया, "देखो, यह है सैनिक अभियान की तैयारी। रावण ने अपने सैनिकों तथा सेनापतियों को असाधारण सुविधाएं दें दुखी हैं। जब-जब राक्षस सेनाएं बाहर गई हैं, उन्हें लूट-पाट में अपार धन तथा सुन्दरियां मिली हैं। रावण ने उन्हें लूटने अथवा अत्याचार करने से कभी मना नहीं किया। लंका की सेना ने कभी कष्ट नहीं पाया। विलास के साधनों में आकंठ डूबी इस सेना के मस्तिष्क को ताले लगे हुए हैं। न्याय-अन्याय का उसको पता नहीं। अच्छे-बुरे का उन्हें ज्ञान नहीं। वे या तो युद्ध करते हें या भोग। किंतु वे सुविधापूर्वक लड़ने के अभ्यस्त हैं। कठिन परिस्थितियों में वे नहीं लड़ सकते...। " सहसा सरमा कुछ रुककर बोलीं, "अच्छा मैं चलूं। त्रिजटा संकेत कर रही है। शायद कोई आ रहा है।"

सीता के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना, सरमा जल्दी-जल्दी पग बढ़ाती हुई वाटिका से निकल गई।

"ओह मेरे राम!" सीता का हाथ अपने हृदय पर चला गया और आंखें आनंद से मुंद गईं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai