बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1 युद्ध - भाग 1नरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास
पन्द्रह
सहायक सैनिक पथराव करते जा रहे थे। परकोटे से राक्षस सैनिक नीचे उतर गए थे और भीतर से बाण अधिक संख्या में बाहर नहीं आ रहे थे कदाचित् राक्षस सेनापति समझ नहीं पा रहे थे कि इस पथराव का क्या अर्थ है। युद्ध पत्थरों से नहीं, शस्त्रों से होता है और राम की सेना की ओर से अभी एक भी शस्त्र-साधारण-सा बाण भी-लंका के भीतर नहीं फेंका गया था। क्या इसे युद्ध माना जा सकता है? और यदि वानर सेना पत्थरों से ही युद्ध करने आई है तो पत्थरों का उत्तर किन शस्त्रों से दिया जाना चाहिए? और यह युद्ध नहीं तो इसका क्या अर्थ हो सकता है?...
प्राचीर के भीतर से शस्त्र नहीं आ रहे थे, अतः वानर सेना की स्थिति काफी सुरक्षित थी। फाटकों पर जोर का पथराव था। इसलिए भीतर से फाटकों की सुरक्षा का प्रबन्ध किया जा रहा था। ...राम ने संकेत किया और श्रमिकों तथा शिल्पियों की सेना आगे बढ़ आई। उनके पास साल वृक्षों के अनेक स्थानों पर सेतु बनकर तैयार हो गए और श्रमिक तथा शिल्पी अपनी छेनी-हथौड़ी के साथ प्राचीर तक जा पहुंचे। अनेक स्थानों पर प्राचीर पर आघात होने लगे और ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बन-बनकर तैयार होने लगीं।
राम खड़े देख रहे थे। जब-जब कोई असैनिक जन-समुदाय राम के पास आया था कि उन्हें सेना में सम्मिलित किया जाए, तब राम ने कभी नहीं सोचा था कि ये लोग युद्ध स्थिति में सैनिक कर्म में भी इतने अधिक सहायक हो सकते हैं। आरंभ में तो अनेक लोगों ने इनका विरोध भी किया था। राम ने यही माना था कि ये जन-समुदाय उनके सहायक भी होंगे। राक्षसों की शस्त्र-विद्या के विरुद्ध उनका एक ही तो शस्त्र था-जन बल। जिन परिखा और परकोटे को रावण ने अपनी सेना की सुरक्षा का मुख्य उपकरण माना था, वह तो अनायास ही ध्वस्त होता दिखाई पड़ रहा था...। वैसे रावण को इतना तो सोचना ही चाहिए था कि जिस सेना को स्वयं सागर का विस्तार नहीं रोक सका, उसे वह छोटी-सी परिखा और पत्थरों को जोड़कर बनाया गया परकोटा कैसे रोक पाएंगे...।
सहायक सैनिक की पाषाण-वर्षा पूरे वेग से चल रही थी। श्रमिक शिल्पी सेना के छेनी-हथौड़े-अभियान से परकोटे में अनेक स्थानों पर छेद होते दिखाई देने लगे थे। तभी नस, बीरबाहु, सुबाहु और पनस अपने सेनिकों के साथ परकोटे पर जा चढ़े। उनकी देखा-देखी अन्य स्थानों पर भी अनेक यूथपति अपने सैनिकों के साथ परकोटे पर चढ़ने का प्रयत्न करते दिखाई पड़ रहे थे।
तभी राक्षस सेना में भयंकर कोलाहल के साथ रावण का जयजयकार हुआ और युद्ध-वाद्य अपने ओजपूर्ण स्वर में बजने लगे। द्वारों के सांकल खटके और अगले ही क्षण राक्षस सेनाएं द्वार खोलकर बाहर निकल आई। उनके आगे-आगे रथ थे और पीछे-पीछे पैदल सेना। वानर सेना के सम्मुख यह विकट घड़ी थी। इस समय उनके अधिकांश सैनिक परकोटे से दूर थे और सहायक सैनिक तथा श्रमिक-शिल्पी परकोटे के निकट थे। वे लोग सशस्त्र राक्षस सेनाओं के सम्मुख नहीं टिक सकते थे। वैसे भी राक्षसों के रथितों से पदाति युद्ध करना वानरों के लिए कठिन था।
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