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बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

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राम कथा पर आधारित उपन्यास

सत्रह

 

रावण का क्रोध बढ़ता जा रहा था। लंका के पश्चिमी द्वार पर धुम्राक्ष, हनुमान के हाथों मार डाला गया था। वज्रदंष्ट्र का दक्षिण द्वार पर अंगद ने वध किया था। दुर्मुख ने सुमन्नत को, जाम्बवान ने महानाद को, तोर ने कुंभहनु को तथा नील ने प्रजन्य को सहज ही नष्ट कर दिया था।

एक के पश्चात् एक सेनापति और सेनानायक के वध का समाचार आता; एक-एक कर वाहिनियों के नष्ट होने की सूचना मिलती और रावण अपने महाराजाधिराजत्व में बंधा, पृथ्वी पर पाद-प्रहार कर विवश घूमता अपना रक्त खौलाता रहता। पहले दिन अपने कुछ वीर योद्धा खोकर भी राक्षस सेना विजयिनी रहीं थी। मेघनाद ने आकर राम और लक्ष्मण-दोनों के वध और वानर सेना के हताश होने का समाचार दिया था रावण ने अपने वीर पुत्र का अभिनन्दन किया था और तत्काल राम और लक्ष्मण के वध का समाचार सीता तक पहुंचा दिया था। रावण ने सोचा था कि सीता दीन होकर आत्मसमर्पण कर देगी और रावण पूर्ण विजय का सुख-भोग करेगा। किंतु सीता ने यह कहकर इस सूचना का तिरस्कार कर दिया था कि रावण का क्या है, वह तो प्रतिदिन एक राम का वध करता है और प्रतिदिन एक नया राम जीवित होकर उठ खड़ा होता है...

कैसे मायाविनी है यह सीता। इधर उसने यह बात कही और उधर वानर सेना के हर्ष-निनाद से लंका की प्राचीर कांप-कांप गई। रावण चकित रह गया था। सेना के दो महासेनापतियों के वध के पश्चात् जिस सेना को या तो युद्ध क्षेत्र से पलायन कर जाना चाहिए था, या रावण के सम्मुख आत्मसमर्पण कर देना चाहिए था; अथवा यदि वह सेना बहुत ही साहसी, दृढ़ और वीर थी तो उसे शोकाकुल होकर रुदन करना चाहिए था, उस वानर सेना को आधी रात के समय क्या मिल गया, जो वह हर्ष-निनाद कर रही है?...और तब रावण को यह सूचना मिली थी कि राम और लक्ष्मण सचमुच जीवित हो उठे हैं...रावण चकरा गया था...कैसे मायावी हैं ये राम और लक्ष्मण, जो मर-मर कर जी उठते हैं। सच कहा था सीता ने, रावण प्रतिदिन एक राम का वध करता है और राम जीवित होकर उठ खड़ा होता है।

प्रतिरावण ने तब प्रबलतम अट्टहास किया था, "राम मायावी नहीं हैं। मायावी तेरा पुत्र मेघनाद है। उसकी माया, झूठ की माया है तूने सीता को झूठ के बल पर ठगना चाहा था; तेरा पुत्र उसी झूठ के आधार पर तुझे ठग गया। तूने ही इस झूठ को सदा संरक्षण दिया है, रावण! अब तू ही उसे भुगत। जब तेरी बहन शूर्पणखा ने आकर तुझसे झूठ कहा था, तो तू उसे सच मानकर सीता का हरण करने चल पड़ा; क्योंकि झूठ तुझे अभीष्ट था। अब मेघनाद के झूठ को सच मान ले, वह भी तो तेरा अभीष्ट है...।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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