" />
लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

Like this Hindi book 16 पाठकों को प्रिय

388 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास

किंतु यह एक के पश्चात् एक सेनापतियों की पराजय और उनकी मृत्यु। यह क्रम और नहीं चल सकता। रावण ने वानरों की शक्ति को कम आंका, इसलिए वह अभी युद्ध-क्षेत्र में नहीं गया, अन्य सेनापतियों को भेजता रहा। पर, यह क्रम और नहीं चल सकता। आज रावण स्वयं जाएगा और उन वानरों को पाठ पढ़ाएगा। रावण के अस्त्र-शस्त्रों से नहीं मरेंगे तो दिव्यास्त्रों का प्रयोग कर उसके सेनापतियों को मारना होगा...यदि राक्षस सेना को वानरों से एक साथ भी पराजय मिली तो लंकावासियों का विश्वास राजाधिराज से उठ जाएगा...

मेघनाद पिता से सहमत नहीं था। उसका विचार था कि अन्य सेनापतियों के रहते हुए, महाराजधिराज का स्वयं युद्ध के लिए जाना अशोभनीय था; किंतु पिता और महाराजाधिराज के अधिकार से रावण ने उसे लंका की रक्षा के लिए नियुक्त किया और स्वयं युद्ध के लिए द्वार से बाहर निकल आया।

रावण के साथ अकंपन, अतिकाय, महोदर, पिशाच, रावणि, त्रिशिरा एवं नरांतक तथा कुंभकर्ण के पुत्र कुंभ और निकुंभ अपनी-अपनी वाहिनियां लिए चल रहे थे। राक्षस सेना प्रलयकालीन ज्वार के समान हुंकार करती हुई बढ़ती चली जा रही थी। रावण ने कोई विशेष व्यूह न बनाकर वानर सेना पर सीधा आक्रमण किया था। उसके सेनापति जहां-जहां वानर यूथपतियों से उलझ गए थे।

सुग्रीव ने रावण को आते देखा। राम अपने व्यूह में अन्यत्र व्यस्त थे। वैसे भी इस समय राम का सीधे रावण से जा टकराना सुग्रीव को उचित नहीं लग रहा था। संभव है कि रावण को देखते ही राम अपना संयम छोड़ बैठें और अपने आक्रोश के कारण स्वयं को अनावश्यक जोखिम में डालें। यह न राम के हित में होगा, न वानर सेना के। उससे तो अच्छा है कि सुग्रीव स्वयं ही रावण को रोकें। उन्हें भी तो रावण से पुराना हिसाब चुकाना था...रावण के रथ के सम्मुख अनेक घोड़े जुते थे। रथ के पहिए बड़े-बड़े थे जंगली भैंसे के चर्म से बने कवच से रथ रक्षित था और अनेक प्रकार के शास्त्रास्त्रों से अटा पड़ा था।

सुग्रीव को अपना, धनुर्विद्या के अभ्यास का अभाव खला। रावण से लड़ने के लिए धनुष ही उपयुक्त शस्त्र था...किंतु सुग्रीव के पास तो गदा थी, गदा कला-कौशल था। शारीरिक बल था और मन में आक्रोशपूर्ण वीरता थी।

वानर सेना की धनुर्धारी टुकड़ियों ने बाणों की पहली बौछार की तो राक्षसों की पैदल सेना की गति रुद्ध हो गई। रावण के रथ की गति मंथर हुई तो उसने धनुष से सारथी को कोंचा, "रथ को आगे निकालो।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book