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बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

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राम कथा पर आधारित उपन्यास

रावण ने लक्ष्मण को मूर्छित करने वाली ब्रह्मशक्ति पुनः उठा ली और धनुष पर चढ़ा, राम के वक्ष पर छोड़ दी, किंतु राम ने अपने कौशल से शक्ति को मार्ग में ही नष्ट कर दिया। ...रावण ने राम का अद्भुत रण-कौशल देखा : उसने ठीक ही सुना था कि इस व्यक्ति ने विश्वामित्र और अगस्त्य से दिव्यास्त्र प्राप्त किए हैं। लगता है कि रावण को देवास्त्रों के लिए पुनः महादेव शिव की शरण में जाना होगा...

भूमि पर नंगे पैर खड़े राम, रावण के शक्तिशाली दिव्यास्त्रों का निराकरण कर रहे थे। उनके विभिन्न अंगों में अनेक अस्त्र-शस्त्र चुभे थे। शरीर से रक्त बह रहा था। शरीर से टपके हुए रक्त ने उनके पांव भिगो कर लाल कर दिए थे। किंतु राम तनिक भी विचलित नहीं हुए थे।

राम के बाणों से रावण के रथ के अनेक घोड़े घायल होकर शिथिल हो रहे थे। सारथी की भुजाएं आहत होकर बल्ला संभालने में बहुत दक्ष नहीं रह गई थीं; और सहसा राम के नाराच ने रावण के धनुष की प्रत्यंचा काट डाली।

रावण दूसरा धनुष लेने के लिए मुड़ा। उसने धनुष उठाकर साधा ही था कि राम ने एक के पश्चात् एक, चार बाण उसके वक्ष में धंसा दिए। रावण की आंखों के सम्मुख अंधकार छा रहा था। सारथी ने उपयुक्त समय जानकर रथ लंका के द्वार की ओर मोड़ दिया।

रावण का हर्ष और अभिमान दोनों ही खंडित हो चुके थे। जब वह लंका में लौटा तो धनुष टूट गया था, रथ के घोड़े या तो मर गए थे, या मरने वाले थे; सारथी पंगु हो चुका था, किरीट खंडित था...विश्वविजेता महाराजाधिराज रावण अत्यंत चिंतित था।

उसने सदा यही माना था कि वह उच्च है, श्रेष्ठ है, अधिक बुद्धिमान, शक्तिशाली और समर्थ है। वानर तथा अन्य जातियों को उसने अपने लिए उपकरण अथवा सामान्य पशुओं से अधिक महत्त्व नहीं दिया था। उन्हें मनुष्य मानने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी थी। उनकी भी कोई सेना अथवा सैनिक शक्ति हो सकती है-यह उसका मन कभी स्वीकार नहीं कर सका था। उसके पास धन था, साम्राज्य था, सेना थी, शस्त्र थे, ब्रह्मा और शिव जैसी महाशक्तियां उसकी रक्षा के लिए खड़ी थी...उन वानरों के पास इनमें से कुछ भी नहीं था किंतु राम की मानवता के प्रति आस्था ने उन्हें क्या से क्या बना दिया था...क्या था राम के पास, मानवता में अप्रतिम आस्था के सिवाय? तो क्या मनुष्य धन-शक्ति, शस्त्र, पशुबल-सबसे बड़ा होता है? ...रावण ने माना था कि ये वानर पशु के समान जन्मे थे, पशु का-सा जीवन जिएंगे और पशुओं की-सी मृत्यु मर जाएंगे। ...किंतु राम की आस्था ने उन्हें इतनी बड़ी शक्ति सिद्ध कर दिया था, ...मात्र मनुष्य, शस्त्रों से बड़ा हो गया था...

किंतु दूसरे ही क्षण रावण सचेत हो गया। वह यह सब क्या सोच रहा है? कहीं उसके भीतर का प्रतिरावण ते उसे बहकाने का प्रयत्न नहीं कर रहा है...शस्त्र शस्त्र हैं, मनुष्य मनुष्य...और रावण को लगा, उसके भीतर ब्रह्मा और शिव के विरुद्ध जमा हुआ आक्रोश फिर से खौलने लगा था...क्यों नहीं वे लोग उसे दिव्यास्त्रों से भी अधिक शक्तिशाली देवास्त्र दे देते। एक बार रावण को देवास्त्र मिल जाय तो वह इस पृथ्वी पर से पशु-सरीखे इन मनुष्यों का चिह्न तक मिटा देगा। ये लोग रावण का विरोध कर जीने के अधिकारी नहीं रहे...किंतु इतनी चिरौरी करने पर भी प्रेम, निष्ठा और भक्ति प्रदर्शित करने पर भी न कभी ब्रह्मा पसीजे, न शिव, कि उसे देवास्त्र दे देते और रावण एक बार तो नाश का विकट तांडव करता...बस उसे दिव्यास्त्रों तक ही रोक दिया जाता है...

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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