" />
लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

Like this Hindi book 16 पाठकों को प्रिय

388 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास

अठारह

 

कुंभकर्ण को रावण ने बहुत दिनों के पश्चात् देखा; और शायद यह संयोग ही था कि उस समय वह पर्याप्त सजग-सचेत अवस्था में था। मदिरा उसने पी रखी थी, किंतु मतावस्था में नहीं था।

रावण ने विभिन्न प्रकार के मांसों के विविध व्यंजनों का विराट् आयोजन कर रखा था। भोजन पर बैठने से पूर्व, रावण के आदेश से सुन्दर युवती दासियों ने उसके शरीर पर चंदन का लेप किया और सुगंधित पुष्पों का उपहार दिया।

कुंभकर्ण ने भुने मांस का टुकड़ा मुख में डालकर चबाना आरम्भ किया तो रावण धीरे से बोला, "तुम्हें इधर कुछ सूचनाएं तो मिली ही होंगी कि लंका इस समय भयंकर युद्ध की स्थिति में है?"

"आज यह बहुत अच्छा भुना है।" कुंभकर्ण बोला, "न तो कहीं से कोमल रहा है, न जलाया गया है। इसे कहते हैं, भली प्रकार तपाया गया कुरमुरा मांस।"

"युद्ध।"...रावण ने पुनः कहा।

"हां! सुना है।" कुंभकर्ण बोला, "अच्छा रसोइया हो तो व्यक्ति जीवन का सुख उठा सकता है; अन्यथा पेट तो सभी भर लेते हैं।"

हमारी सेना नष्ट हो गई है और राजकोष खाली हो गया है। रावण बोला, "इस युद्ध में हमें शीघ्र विजय न मिली तो राक्षस साम्राज्य नष्ट हो जायेगा।"

कुंभकर्ण ने पहली बार, अपने हाथ में पकड़े हुए मांस-खंड से दृष्टि हटाकर विवेकपूर्ण ढंग से रावण को देखा, "भैया! जब भाभी मंदोदरी और विभीषण ने कहा था कि सीता को लौटा दो और युद्ध मत करो तो आपने उनकी एक नहीं सुनी। आपने अपनी शक्ति के दंभ में किसी का परामर्श ही नहीं माना।"

रावण ने कुछ चौंककर कुंभकर्ण को देखा : उसकी चेतना आज कुछ अधिक ही जागरूक हो रही थी। इतने चैतन्य और जागरूक लोग रावण को पसंद नहीं आते। ऐसे लोग रावण के अनुकूल नहीं होते।

रावण ने एक पात्र में मदिरा डाली, "यह मदिरा पीकर देखो। यह नई आई है। देवलोक और सुरपुर में भी ऐसी मदिरा किसी ने नहीं चखी होगी।"

युद्ध की बात कुंभकर्ण भूल गया। उसने मदिरा का पात्र उठाया और तृषित मनुष्य के समान गटागट पीकर पात्र धर दिया, हथेली की पीठ से होंठ पोंछे और रावण को देखा, "अच्छी है।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai