बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1 युद्ध - भाग 1नरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास
"यदि कल का युद्ध निर्णायक और भयंकर होगा तो हम किसी भी महत्त्वपूर्ण सेनापति अथवा यूथपति को युद्ध-क्षेत्र से दूर नहीं भेज सकते।" राम बोले, "ऐसी स्थिति में तात सुषेण के कार्य में बाधा पड़ेगी।"
"बाधा क्यों पड़ेगी?" सुषेण बोले, "यदि प्रातः ही कुछ साधारण सैनिकों अथवा खोजियों को विशल्यकर्णी बूटी लाने के लिए भेज दिया जाए तो वे लोग परसों किसी भी हालत में लौट आएंगे।"
"तो ऐसे ही कीजिए। कल प्रातः युद्धारंभ से पूर्व ही कुछ लोगों को आवश्यक औषधियां लाने के लिए भेज दीजिए।"
तभी एक नायक ने आकर राम को अभिवादन किया।
कहो तेजधर! राम मुसकराए, "आज का कार्य कैसा रहा?"
"जिस दिन युद्ध जितना अधिक भयंकर होता है," तेजधर बोला, "उस दिन हमारी उपलब्धियां उतनी ही अधिक होती हैं।"
"तेजधर एक ओर हट गया। उसके संकेत पर उसके पीछे खड़े उनके साथियों ने आगे बढ़कर, अपने हाथों में पकड़े शस्त्र राम के सम्मुख की खुली जगह पर रखने आरम्भ कर दिए। ये शस्त्रास्त्र युद्ध-क्षेत्र में पड़े हताहत योद्धाओं के थे, जिन्हें तेजधर और उनके साथी वहां से चुनकर लाए थे।
एक ढेर साधारण बाणों का था, दूसरा खड्गों का, तीसरा शूलों का। कुछ परिध, शक्तियां और त्रिशूल भी थे। राम ने एक विचित्र प्रकार का त्रिशूल उठा लिया। उसका भली प्रकार निरीक्षण कर बोले, "महादेव शिव के लौकिक शस्त्र भी अद्भुत हैं। यह अकेला त्रिशूल, तीन शूलों तथा खड्गों का सामूहिक कार्य करता है। शूलों के समान यह तीन घाव करता है, तीन खड्गों के समान मांसपेशियों को काटता है और वापस खींचने पर तंतुओं को बाहर ले आता है। महादेव शिव की रावण पर इतनी कृपा न होती तो राक्षस सेना इतनी भयंकर और प्रहारक न होती।"
"मैं तो चाहता हूं कि महादेव उन्हें और अधिक शस्त्र दें।" हनुमान का स्वर कटु भी था और उग्र भी, "ताकि राक्षस सेना से होकर वे शस्त्र हमारे पास पहुंचे। हमारा तो शस्त्रागार ही राक्षस सेना है।"
"ठीक कहते हो हनुमान!" राम बोले, "निर्धन जन-वाहिनियों के शस्त्रदाता प्रायः उनके धनाढ्य शत्रु होते हैं।" शस्त्रों का निरीक्षण कर राम ने उन्हें शस्त्र-वितरण टोली को दे दिया।
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