बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1 युद्ध - भाग 1नरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास
प्रातः इससे पहले कि किसी को औषधियां लाने के लिए भेजा जाता, राम को सूचना मिली कि राक्षस सेनाएं न केवल युद्ध के लिए लंका की प्राचीर से बाहर निकल आई हैं वरन् एक आकस्मिक आक्रमण में उन्होंने वानर सेना द्वारा समुद्र पर बनाए गए सेतु की दिशा में इतनी टुकड़ियां भेजकर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयत्न कर रही है। वानर सेना के लिए वह सेतु जीवन-मरण का प्रश्न था। वे भी प्राण छोड़कर लड़ रहे थे। सेतु पर इस समय किसी का भी आधिपत्य नहीं था; किंतु उस क्षेत्र में आगमन संभव नहीं रह गया था। युद्ध अपने उग्रतम रूप में चल रझ था। राम शेष सब कुछ भूल गए, याद रह गया, केवल युद्ध। विभीषण की बात सत्य प्रमाणित हुई थी। आज भयंकर युद्ध होने जा रहा था।
युद्ध का शंख बजा दिया गया। युद्ध तो चल ही रख था। प्रश्न केवल सैन्य-वितरण का था। राम ने गंधमादन, नल, मैंद तथा जाम्बबान को लंका के उत्तरी द्वार पर भेज दिया। नील, हनुमान, ऋषभ तथा द्धिविद दक्षिणी द्वार पर नियुक्त हुए। सुग्रीव, सुषेण, वेगदर्शी और गवाक्ष ने ही द्वार पर व्यूह संभाला। अंगद, गवय, केसरी तथा कुमुद ने पश्चिमी द्वार का नेतृत्व संभाला।
लक्ष्मण को केन्द्र में रखकर राम स्वयं सेतु युद्ध में जाना चाहते थे; किंतु लक्ष्मण ने पीछे केन्द्र में रहना सर्वथा अस्वीकार कर दिया। राम ने कुछ आश्चर्य से लस्मण की ओर देखा : अब लक्ष्मण किसी भी सुरक्षित स्थान पर नहीं रहना चाहते थे। इस प्रकार की कोई स्थिति आने पर उसे तत्काल अस्वीकार कर, अधिक-से-अधिक संकट वाले स्थान पर जाना चाहते थे...। संकट के प्रति यह आकर्षण सौमित्र का अतिरिक्त उत्साह था, अथवा किसी बात की प्रतिक्रिया?...राम समझ नहीं पा रहे थे...
अंततः हरिलोमा, विद्युदंष्ट्र तार सूर्यानन, ज्योतिख, दधिमुर्मुख तथा पावकाक्ष को केन्द्र में छोड़कर राम लक्ष्मण को साथ लेकर सेतु-क्षेत्र की ओर चले गए। विभीषण को उन्होंने पृष्ठ भाग की रक्षा के लिए पीछे छोड़ दिया था।
सेतु-क्षेत्र में राक्षसों के अनेक सेनापति एक साथ जूझ रहे थे। कुंभकर्ण के पुत्रों-कुंभ तथा निकुंभ-के साथ कंपन, प्रजंघ, द्विविद तथा शोणिवाक्ष राक्षसराज रावण की जयजयकार पुकार रहे थे। युद्ध में प्रवेश करते ही राम समझ गए कि आज राक्षस सेना किसी विशेष योजनाधीन युद्ध कर रही है। संभव है कि वे सेतु पर अधिकार कर, उसे भंग कर अथवा उसे अपने आधिपत्य में रख, वानर-सेना का संपर्क अपने पीछे के सूत्रों से तोड़ देना चाहते हों...।
राम और लक्ष्मण के लिए राक्षस सेनापतियों की प्रगति को रुद्ध करना कठिन नहीं था। उनके बाणों के सम्मुख बाध्य होकर राक्षस सेना ने आगे बढ़ना तो स्थगित कर दिया; किंतु पीछे हटने का उन्होंने तनिक भी प्रयत्न नहीं किया। उन्होंने सैनिकों को कुछ सुरक्षा प्रदान कर रखी थी।
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