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संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

राक्षस सैनिक आगे बढ़े और राम का पहला आदेश लक्ष्मण के लिए था। राक्षस धनुर्धर टुकड़ी ने प्रथम आघात के लिए अपने धनुषों की प्रत्यंचाएं खींची ही थीं कि लक्ष्मण की टुकड़ी, ने बाण छोड दिए।...राक्षस धनुर्धारियों के मुख आश्चर्य से खुल गए : एक तो उन्हें बाणों के आने की दिशा का ज्ञान नहीं हुआ और दूसरे शायद उन्होंने धनुर्विद्या के इस कौशल की कल्पना ही नहीं की थी...उन्होंने भौंचक दृष्टि से अपने शत्रुओं की खोज का प्रयत्न किया और फिर अपने पीछे आने वाले, अपने ही सैनिकों के धक्के से आगे बढ़ गए। भागते हुए, उन्होंने कटि से खड्ग खीच लिए, जिसका अर्थ था कि उनके पास और धनुष नहीं थे। राम की इच्छा हुई, वे राक्षसों के इस युद्ध-कौशल पर खिलखिलाकर हंस पड़ें।

किंतु, यही युद्ध की निर्णायक घड़ी भी थी। राक्षसों की सेना अपने धावे में आगे बढ़ती हुई, राम के सम्मुख तक आ पहुंची। खेतों में काम करती हुई आश्रमवाहिनी अपने हल-कुदाल छोड़कर, खेतों से आगे बढ़ गई। पीछे खेतों में केवल ग्रामवासी ही रह गए थे।

सम्मुख युद्ध में पहले राम ने धनुष उठाया। गोह के चमड़े के दस्ताने पहने उनकी अंगुलियां बाण छोड़ने लगीं। उसी समय सेना के पिछले भाग पर अनिन्द्य तथा भूलर की धनुर्धर टुकड़ियां टूट पड़ीं। मध्य भाग पर लक्ष्मण और उनके साथी आक्रमण कर रहे थे। बाईं ओर से सीता अपनी टुकड़ी को लेकर आईं और दाहिनी ओर से मुखर।

राम के मन में युद्ध का परिणाम आरंभ से ही स्पष्ट था-राक्षसों की सेना शुद्ध पशु-शक्ति थी। न उनके पास योजना थी, न संगठन, न उनके पास धनुर्धर थे. न उचित नेतृत्व। वह तो हत्या-बलात्कार, अग्निदाह तथा लूटपाट करने वाले पशुओं की एक टोली थी-जिन्हें योद्धा नहीं कहा जा सकता था। राम की आश्रमवाहिनी विकट आत्मबल से युद्ध कर रही थी। उनके जनसैनिकों तथा अन्य धनुर्धरों को किसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ रहा था।

सहसा राक्षसों का एक दल युद्ध छोड़कर, खेतों की ओर भागा। उनके हाथों में अग्निकाष्ठ थे-निश्चित रूप से, वे खेतों में खड़ी फसल को अग्निसात् करना चाहते थे...। इस प्रकार की घटना की कल्पना राम ने नहीं की थी राक्षस मनुष्यों को छोड़ खेतों से लड़ने लगेंगे; न ही उसे रोकने की कोई योजना राम के मन में थी।...एक ही मार्ग था कि अपने व्यूह को परिवर्तित कर, वे दो टुकड़ियों को उनके पीछे दौड़ाएं...।

राम ने भूलर की टुकड़ी को संकेत किया। भूलर के साथी वृक्षों से नीचे कूदे और भागते हुए राक्षसों की पीठ पर उन्होंने बाण छोड़ दिए। दो राक्षस गिरे भी, किंतु शेष अपने अग्निकाष्ठों के साथ, खेतों की ओर निरंतर भागते रहे।...और जब लगा कि वे खेतों में घुसकर अग्निदाह आरंभ कर देंगे और जीता हुआ युद्ध भी इस रूप में पर्याप्त क्षति दे जाएगा-राम का ध्यान सहसा खेतों में स्तब्ध खड़े ग्रामवासियों की ओर चला गया। ग्रामवासियों की दृष्टि भी खेतों की ओर भागते हुए उन राक्षसों की ही ओर थी, जिनके हाथों में अग्निकाष्ठ थे।...जिस आकस्मिक ढंग से राक्षस युद्ध छोड़कर भागे थे, उसी आकस्मिकता से ग्रामवासियों ने अपनी प्रतिक्रिया भी प्रकट की।...सहसा उनके कुदाल उठ गए और वे खेतों को छोड़, राक्षसों के सामने आ खड़े हुए।

राम ने आश्चर्य से देखा : उन सबके आगे माखन था और उसी ने आगे वाले राक्षस पर अपने कुदाल का पहला वार किया। राक्षस के हाथ से छूटकर अग्निकाष्ठ दूर जा गिरा और वह अपनी कलाई पकड़े हुए, भूमि पर लोट गया। दोनों ओर से प्रहार पर प्रहार होने लगे। प्रायः सारे ग्रामवासी माखन के आसपास आ डटे थे; और अपने खेतों को बचाने के लिए पूर्णतः कटिबद्ध थे। तब तक मुखर की टोली उनके सिर पर आ पहुंची और उसने पीछे से राक्षसों को धर दबोचा। एक-एक कर सारे राक्षस धराशायी हो गए। उनके अग्निकाष्ठ बुझा दिए गए। किंतु माखन तथा अन्य ग्रामवासी, जैसे मुक्त तथा निर्भय हो चुके थे। वे अपने कुदाल उठाए हुए, राक्षसों की पिटती हुई सेना से जा टकराए।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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