उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
सुतीक्ष्ण मुनि सुखासन में बैठे, राम की प्रतीक्षा कर रहे थे। राम ने अत्यन्त सशंक भाव युक्त, परीक्षक दृष्टि से मुनि को देखा, उन्हें राम का अपने साथियों सहित, सशस्त्र आश्रम में आना अन्यथा तो नहीं लगा? किंतु मुनि की भंगिमा में ऐसा आभास नहीं था। संभवतः धर्मभृत्य ही अपने पूर्वाग्रह के कारण, उस प्रकार सोच रहा हो।
"स्वागत राम!" प्रणाम के उत्तर में मुनि बोले, "बैठो भद्र, सब लोग बैठो। ओह, देवी वैदेही भी शस्त्र धारण करती हैं!"
"मुनिवर, राम की पत्नी शस्त्र धारण नहीं करेगी तो वन में राम के साथ निवास कैसे करेगी?"
"ठीक कहती हो पुत्री!" मुनि बोले, "राम के साथ निवास करने वाले व्यक्ति को तो शस्त्र धारण करना ही पड़ेगा।"
लक्ष्मण ने सिर उठाकर मुनि को देखा, फिर जैसे अपनी जिह्वा को कुछ कह उठने से रोकने के लिए अन्य लोगों की ओर देखने लगे। मुखर मुस्करा रहा था, धर्मभृत्य की आंखों में तिक्तता उभर आई थी तथा अनेक आगंतुक मुनि वितृष्णा से इधर-उधर देख रहे थे।
"मुनिवर," राम बोले, "इस क्षेत्र में क्या राक्षसी उपद्रव नहीं है? क्या आपको शस्त्रों की आवश्यकता नहीं पड़ती?"
"उपद्रव होते होंगे," सुतीक्ष्ण उदासीनता से बोले, "किंतु उन्हें बहुत महत्व देना अनावश्यक है। हम जैसे वनवासी अपने आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहते हैं। अनासक्त संन्यासी को इन सांसारिक झगड़ों से क्या लेना। हम तो जल में कमल के समान रहते हैं। जल बहता रहता है,
कमल अपने स्थान पर स्थिर रहता है।
"राम ने साभिप्रारा दृष्टि से मुनि को देखा, "हमें एक लंबा समय इसी वन में काटना है मुनिवर। कृपया परामर्श दें, हम अपने निवास के लिए कहां कुटिया बनाएं?"
सुतीक्ष्ण ने राम की आंखों में देखा, क्या कहना चाहते हैं राम? राम उन्हें गंभीरता से मार्ग-निर्देशन की प्रार्थना करते-से लगे।
"वैसे तो मेरा अपना आश्रम ही बहुत सुविधाजनक स्थान है।" मुनि ने उत्तर दिया, "जलवायु अच्छी है। फलों के वृक्ष पर्याप्त हैं। पेय जल की सुविधा है। ऋषि समुदाय का आवागमन लगा रहता है। तुम चाहो तो यहीं रह सकते हो..."राम ने मुनि के स्वर का कैप स्पष्ट अनुभव किया, "हां! कभी-कभी कुछ बलशाली उपद्रवी पशु अवश्य इधर आ जाते है। उन्हें इस आश्रम के निवासियों से कोई भय नहीं है। वे आश्रमवासियों की साधना में कुछ विघ्न उपस्थित कर, संतुष्ट हो लौट जाते हैं।"
राम का मस्तिष्क अत्यन्त तीव्र गति से मुनि के एक-एक शब्द का विश्लेषण कर उनका अभिप्राय समझ रहा था, स्थान सुविधाजनक था, इसलिए राम चाहे तो यहां टिक सकते है। किंतु, मुनि क्या चाहते हैं?...अर्थात मुनि की ओर से निमंत्रण नहीं है।...कुछ शक्तिशाली पशु आश्रम में आते हैं। उन्हें आश्रमवासियों से भय नहीं है; क्योंकि न आश्रमवासी उनका विरोध करते हैं, न उनमें उसकी क्षमता है। वे पशु विघ्न उपस्थित करते हैं...मुनि उन्हें कुछ नहीं कहते, इसलिए वे स्वयं ही संतुष्ट होकर लौट जाते हैं...। कोन हैं वे पशु? राम यहां रहेंगे तो क्या राम भी उनका विघ्न सह लेंगे? उन पशुओं को राम से भी कोई भय नहीं होगा?
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