लोगों की राय

उपन्यास >> संघर्ष की ओर

संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

Like this Hindi book 15 पाठकों को प्रिय

43 पाठक हैं

राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

"रक्षा। और आपकी प्रतीक्षा। यदि अनुमति हो तो जाऊं।"

"नहीं! नहीं!" लक्ष्मण बोले, "अभी यह स्थान इतना सुरक्षित नहीं है। तुम यहीं ठहरो।" लक्ष्मण पास जाकर बनते हुए कुटीरों का निरीक्षण करते रहे। कुटीर, उनके बताए हुए ढंग पर, चट्टानों के भीतर-भीतर अर्द्ध वृत्ताकार रूप में बन रहे थे। वे साफ-सुथरे, हवादार तथा आकर्षक लग रहे थे। इसी गति से काम चलता रहे तो प्रत्येक परिवार के लिए, एक-एक अच्छा कुटीर तैयार हो जाने की संभावना थी।

"नेतृ कौन है?" लक्ष्मण ने काम करती हुई एक लड़की से पूछा।

"सुधा!"

"अनिन्द्य की पत्नी?"

"हां।" लड़की ने सिर हिला दिया।

"इस समय कहां है?"

लड़की ने एक प्राकृतिक गुफा की ओर संकेत कर दिया, "भोजन की तैयारी कर रही है।"

लक्ष्मण सुधा को खोजते हुए गुफा तक पहुंचे। सुधा, दो-तीन महिलाओं की सहायता से भोजन तैयार करने में लगी हुई थी। बे सब संभ्रम से उठ खड़ी हुईं।

"कैसा चल रहा है?"

"...आप देखें।" सुधा संकोचपूर्ण स्वर में बोली, "कोई त्रुटि हो तो बता दें। हम सुधार कर लेंगी।"

"नहीं। कोई त्रुटि नहीं है।" लक्ष्मण मुस्कराए, "मैं तो यह पूछने आया था कि यदि तुम लोग स्वयं इतने अच्छे कुटीर बना सकती थीं, तो अब तक उन गंदी झुग्गियों में क्यों रह रही थीं?"

"स्थान और सामग्री सौमित्र!" सुधा का स्वर खुला, "उग्राग्नि न हमें स्थान घेरने देता था, न वन से लकड़ियां काटने देता था। ऐसी स्थिति में सिवाय गुफाओं के, कोई स्थान नहीं खोज पाते थे।"

"ठीक है।" लक्ष्मण हंसे, "घर तो अच्छे बन रहे हैं, किंतु बस्ती के पुरुषों का भोजन, खान पर कैसे पहुंचेगा? यह भोजन तो मुझे बहुत थोड़ा-सा लग रहा है।"

"उनको भोजन सीता दीदी आश्रम से भेजेंगी।" सुधा ने बताया, "यह उन्हीं की व्यवस्था है कि जब तक हम लोग दिन-भर कुटीर-निर्माण का कार्य करेंगी, पुरुषों के भोजन का दायित्व हम पर नहीं होगा, कुटीर बन जाएंगे, तो हम अपने-अपने घर में चूल्हा जलाएंगी।"

"अच्छा! मैं चल रहा हूं। तुम लोग अपना काम करो।" लक्ष्मण चलने लगे, "मेरा विचार है, तुम लोगों को अपने काम के लिए किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं है।"

"आर्य सौमित्र।" पीछे से सुधा ने पुकारा, "आप चाहें तो आर्य मुखर को भी ले जाएं। वे बेचारे बैठे-बैठे ऊब रहे हैं।"

"और तुम्हारी रक्षा?"

"दिन के समय हम अपनी रक्षा कर लेंगी।" सुधा हंसी, "हमारे पास ढेर सारी लकड़ियां हैं-कुछ कुल्हाड़ियां, हंसिया और गंड़ासे भी हैं।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai