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उपन्यास >> संघर्ष की ओर

संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

"अच्छा, एक प्रश्न का उत्तर दो।" लक्ष्मण क्षण-भर रुककर बोले, "तुम सब इधर-उधर व्यर्थ घूमने वाले, आपस में मार-पीट करने वाले, माता-पिता को तंग करने वाले बच्चे हो..."

"नहीं!" लक्ष्मण का प्रश्न पूरा होने से पहले ही प्रायः बच्चे समवेत स्वर में बोले, हम समाज के उपयोगी अंग हैं। हम समाज का व्यर्थ बोझ नहीं, सार्थक अंग हैं।"

"छोटे बच्चों की रक्षा कौन करेगा?"

"बड़े बच्चे।"

"जो दुर्बल और असहाय को सताएगा, वह क्या कहलाएगा?"

"राक्षस!"

"क्या तुम राक्षस बनना चाहते हो।"

"नहीं। हम राक्षसों का नाश करना चाहते हैं।"

लक्ष्मण मुस्कराए, "तुम लोग सचमुच योग्य बच्चे हो। तुम्हारे विषय

में विशेष रूप से प्रशस्ति वचन कहे ही जाने चाहिए।" वे रुके, "मैं जा रहा हूं। तुम लोग अब क्या करोगे?"

"बड़े बच्चे छोटे बच्चे को सुलाकर, स्वयं अपना पाठ याद करेंगे।"

"अच्छा। अब कल मिलेंगे?"

वन के जिस भाग से कुटीरों के लिए लकड़ियां कटी थीं, वहीं राम अपनी टोली के साथ वन की सफाई कर रहे थे। उनकी टोली में बीस पुरुष थे-दस श्रमिक और दस ब्रह्मचारी। ये बीस व्यक्ति कठोर कर्मक्षमता के आधार पर चुने गए थे। यह टोली इस क्षेत्र की जन-वाहिनी का मेरुदंड बनने जा रही थी।

वे लोग प्रातः से ही राम के साथ थे। राम ने उन्हें बताया था कि वैसे तो समस्त श्रमिकों तथा आश्रमवासियों को सैनिक-प्रशिक्षण प्राप्त करना था, किंतु उन्हें मुख्य रूप से श्रमिक अथवा ब्रह्मचारी ही रहना था, उन्हें अपने स्थान पर रहकर, अपना काम करते हुए, अपनी, अपने समाज की तथा सामाजिक संपत्ति की रक्षा करनी थी; किंतु राम की इस टोली को मुख्यतः सैनिक-कर्म करना था तथा आवश्यकतानुसार अन्य स्थानों पर जाकर वहां जन-सामान्य की रक्षा करनी थी। अपने खाली समय में उन्हें सामाजिक उत्पादन के क्षेत्र में अपना योगदान करना था।

संयोग से वन के इस भाग से लकड़ी कटने के कारण, वन छीज गया था। वैसे भी यह स्थान बस्ती, आश्रम तथा खान-प्रायः तीनों के ही समीप था। राम ने अपनी टोली के सामाजिक-उत्पादन-श्रम के लिए इसी स्थान को पसंद किया था। उन लोगों ने अपनी सुविधा के अनुसार कुछ बड़े-बड़े वृक्ष छोड़कर, शेष पेड़-पौधों को काट दिया था। उनकी जड़ें खोद डाली थीं और झाड़-झंखाड़ साफ कर दिए थे। सारा क्षेत्र साफ कर, वे एक पेड़ के नीचे आ बैठे थे और राम उन्हें समझा रहे थे, "इस क्षेत्र में हमें दो काम करने हैं : सैनिक व्यायाम के लिए स्थान तथा उपकरण बनाना और शेष भूमि को खेतों में बदल देना। वे खेत हमारी टोली अर्थात् जन-सेना के खेत होंगे। हमें प्रयत्न करना होगा कि हम अपने खेतों में अपनी आवश्यकता के लिए पर्याप्त अन्न उत्पन्न करें ताकि हमारी आवश्यकताओं का बोझ हमारे साथियों पर न पड़े...।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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