उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"ठीक है सौमित्र!" राम ने शांति की मुद्रा में अपनी हथेली उठाई,
"मंती और तुम्हारी बात से सहमत होते हुए भी, हमें अनिन्द्य द्वारा दिए गए तर्कों पर विचार करना होगा।..." राम रुककर बोले, "जो लोग उजास के विरुद्ध कार्यवाही इसलिए नहीं कर पा रहे, क्योंकि वह राक्षस नहीं है, वे मुझे बताएं कि वे राक्षस किसको कहते हैं? क्या मनुष्य अपने कर्म से राक्षस नहीं बनता? किसी अन्य ग्राम का व्यक्ति यहां आकर मदिरा बेचे, तुम्हारी दुर्बलता और अज्ञान का लाभ उटाकर तुम्हारा शोषण करे तो तुम उसे राक्षस कहोगे? और वही काम तुम्हारी अपनी बस्ती का आदमी करे तो उसे अपना बंधु कहोगे?"
"नहीं।" दर्शकों की भीड़ ने चीत्कार किया।
"उसे भी राक्षस मानोगे?"
"हां!"
"ऐसी स्थिति में उजास को भी दंडित किया जाना चाहिए।" राम पुनः बोले, "दूसरी बात उसके व्यवसाय की है। व्यवसाय भी दो प्रकार के होते हैं-जब कोई हमारी आवश्यकता तथा लाभ की वस्तुएं उपलब्ध करा, उससे अपनी आजीविका प्राप्त करे, तो यह विक्रेता और ग्राहक, दोनों पक्षों के लिए हितकर व्यवसाय है। दूसरी ओर, जब कोई अपने स्वार्थ के लिए, हमें हानिकर वस्तुओं की ओर प्रवृत्त कर अपना लाभ कमाता है, तो वह व्यवसाय नहीं, रक्त-शोषण है। आप ध्यान दीजिए कि जो व्यवसाय जन-सामान्य के लिए जितना अहितकर होगा, उसमें व्यवसायी को उतना ही अधिक लाभ होगा। जो व्यक्ति लाभ के लिए, अपने समाज की क्षति करता है, वह राक्षस क्यों नहीं है? आज वह अपने स्वार्थ के लिए आपको मदिरा पिलाकर आपके शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर आघात कर रहा है; कल वह अपने इसी लोभ में राक्षसों को आपकी सुरक्षा-व्यवस्था के विषय में सूचनाएं देकर, आपको पुनः उनका दास बना देगा। जो अपने स्वार्थ के मोह में न्याय-अन्याय नहीं देखता, वह राक्षस नहीं तो क्या है-वह दंड का भागी है या नहीं?"
"है!" सबसे अपना समर्थन व्यक्त किया।
सहसा भीड़ में से अपना मार्ग बनाता हुआ स्वयं उजास प्रकट हुआ। वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, "भद्र राम! मैं मूर्ख आदमी हूं। यह सब कुछ नहीं सोचता, जो आपने कहा है। मैं तो केवल यह जानता हूं कि परिवार के पोषण के लिए मैं यह व्यवसाय करता हूं। मैं अपने समाज का शत्रु नहीं हूं। मैं किसी का बुरा नहीं चाहता; किंतु मेरे पास दूसरा कोई व्यवसाय नहीं है।"
"तुमने दूसरा व्यवसाय प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं किया।" राम तीखे स्वर में बोले, "अन्यथा तुम्हें खान अथवा खेत में परिश्रम करने से कौन रोक सकता था।"
"खान अथवा खेत में श्रम करने का मुझे अभ्यास नहीं है।" उजास बोला, "मैं इतना कठिन परिश्रम नहीं कर सकता।"
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