उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"ग्रामवासियों की स्थिति अच्छी नहीं है।" भीखन ने कहा, "मुझ जैसे बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिनके पास थोड़ी-सी अपनी भूमि है। उसकी उपज पर भी भूधर इतना अधिक कर लगाता है कि कृषक के पास कठिनाई से दो समय खाने को बचता था। अधिकांश लोग ऐसे हैं, जिनके पास अपनी भूमि नहीं थी, वे भूधर की भूमि पर काम करते थे; और उससे पारिश्रमिक में अन्न पाते थे। वह अन्न इतना नहीं होता था कि खाते भी और बचाते भी। इधर, भूधर की मृत्यु और विशेषकर राक्षसों के आक्रमण के बाद से गांव के प्रायः लोगों की स्थिति खराब है। उन्हें वन के फलों पर रहना पड़ रहा है। अभी तक वे निराहार नहीं हैं; किंतु वैसी स्थिति शीघ्र ही आ जाने की आशंका है।"
"मुखर," राम बोले, "अपनी संचार-व्यवस्था का थोड़ा-सा बल इधर भी लगाओ। बाहरी शत्रुओं का हमें पता रहे, यह तो बहुत आवश्यक है ही; किंतु इन भीतरी शत्रुओं-भूख तथा बीमारी-की भी सूचना मिलती रहनी चाहिए।"
"आज से ही प्रबंध करूंगा।" मुखर ने आश्वासन दिया।
"गांव में भूधर के भवन में कुछ अन्न है क्या?" राम ने पूछा।
"कह नहीं सकता!" भीखन बोला, "किंतु आशा कम ही है। वे लोग बंदियों को छुड़ाकर ले गए हैं तो क्या अन्न छोड़ गए होंगे?"
"ऐसा है मुनि आनन्द सागर," राम बोले, "कि अन्न प्राप्ति तथा अन्न के उत्पादन के लिए हमें विशेष रूप से सावधान रहना होगा। पहले तो आप देखिए कि आश्रम में कितना अन्न है। लक्ष्मण, तुम आज किसी समय जाकर भूधर के भवन का परीक्षण करो। मुखर तथा भीखन से विभिन्न घरों की स्थिति जानकर, अपने भंडार तथा उनकी आवश्यकता के अनुसार, उन्हें खाद्य सामग्री देने की कुछ व्यवस्था हमें करनी होगी। चाहे अन्न पहुंचाएं, चाहे वन के फल अथवा कंद-मूल। किंतु, भूख से मरने की स्थिति हम नहीं आने देंगे। आवश्यकता पड़े तो धर्मभृत्य के पास भी समाचार भेज दो। संभवतः वर्तमान तो इस रूप में संभल जाएगा, किंतु भविष्य की चिंता मुझे और भी अधिक है...।"
"भविष्य की क्यों?" लक्ष्मण ने पूछा।
"भूमि किसी के भी अधिकार में हो, उसे जोता-बोया नहीं जाएगा, तो अन्न कैसे उत्पन्न होगा? ग्रामवासियों में से एक भीखन हमारे साथ है। पच्चीस जनसैनिक, भीखन और मैं, सारे श्रम के बाद भी, एक-चौथाई
भूमि ही कृषियोग्य बना पाएंगे। शेष भूमि परती रह जाएगी, फिर अन्न की कमी के कारण बीज का अभाव हो सकता है। यदि पर्याप्त अन्न नहीं उपजा, तो अगले वर्ष यहां अकाल पड़ेगा या नहीं?" राम ने रुककर देखा, सभी जैसे स्तब्ध बैठे थे। राक्षसों के आक्रमण की बात तो वे उत्सुकता तथा किंचित् भय से सुनते थे; किंतु अकाल...।
"उससे बचने का एक ही मार्ग है।" राम बोले, "हम अकाल की संभावना से भी उसी तत्परता से लड़ें, जैसे राक्षसों के विरुद्ध लड़ते हैं।"
"पर कैसे?" आनन्द सागर ने पूछा।
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