उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"ओह!" राम मुस्कराए, "तुम लोग राक्षसों के लौट आने की आशंका से भयभीत हो। तुम चाहते हो कि यदि वे लौटें तो उन्हें यह सूचना मिले कि उनकी भूमि पर राम ने आधिपत्य जमा रखा है; और वे मेरे शत्रु हो जाएं।...यही बात है?"
"हम आपका अहित नहीं चाहते राम!" माखन बोला, "किंतु आप समर्थ हैं। हम राक्षसों की अपेक्षा बहुत दुर्बल हैं।"
राम चुपचाप उन्हें देखते रहे, जैसे उनकी सच्चाई को परख रहे हों, और बोले, "यदि तुम्हारी यही इच्छा है, तो यही करो। मैं नहीं चाहता कि मैं तुम्हारे लिए भय और संकट का कारण बनूं; किंतु दो-एक बातें समझने का प्रयत्न अवश्य करो।"
वे लोग उत्सुक दृष्टि से राम को देखते रहे।
"पहली बात तो यह है कि यह भूमि भूधर और उसके बंधुओं की नहीं थी। यह भूमि तुम्हारी ही थी; और तुम्हारी ही है। भूमि उन्हीं की होती है, जो उसे जोतते-बोते हैं। तुम इसे जोतो-बोओगे, तो वह अब भी तुम्हारी ही होगी। जैसे नदी और उसका जल किसी एक व्यक्ति का नहीं होता; किंतु यह व्यक्तिगत इच्छा अथवा आवश्यकता पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति कुआं खोदकर उसमें से पानी पीता है। उसी प्रकार तुममें से कोई कृषि-कर्म छोड़कर अन्य उद्योग आरंभ कर दे-यह उसकी इच्छा है; अन्यथा भूमि तुम्हारी ही है।" राम क्षण-भर रुककर बोले, "किसी समय भूधर या उसके पूर्वजों ने अपनी धूर्तता से यह भूमि तुमसे छीन ली होगी..."
"उसके पूर्वजों ने भी छीनी थी, और भूधर भी छीन रहा था।" भीड़ में से एक स्वर आया।
"भूमि तो भूमि, वह तो हमारी बहू-बेटियां तक छीन रहा था।" माखन बोला।
"मुझे भीखन ने बताया था।" राम बोले, "अब तुम ही बोलो, इस प्रकार के षड्यंत्रों से वह तुम्हारी स्त्रियों को छीन लेगा, तो क्या वे उसकी हो जाएंगी?"
"नहीं।"
"तो फिर तुम्हारी भूमि कैसे उसकी हो गई?"
"भूमि की बात और...।" माखन बोला।
राम समझ गए, लोहा अभी गर्म नहीं हुआ। बोले, "आओ। काम करें। विश्राम बहुत हो गया।"
ग्रामवासियों की एक पृथक टोली भी बन सकती थी, किंतु राम ने जान-बूझकर ऐसा नहीं किया। उन्हें भी पूर्ववर्ती टोलियों में ही मिला दिया गया। वे अभ्यस्त दक्ष कृषक थे। ब्रह्मचारी कृषि-कर्म से अनभिज्ञ थे और जनसैनिक भी मूलतः श्रमिक अथवा ब्रह्मचारी थे। उन्हें खेती का काम करते हुए, कुछ समय अवश्य हो गया था; किंतु अभी भी वे पूर्णतः किसान नहीं बने थे। ग्रामवासियों की पृथक् टोली बना दी जाती, तो अन्य टोलियां उनसे स्पर्धा नहीं कर पातीं।
ग्रामीणों के टोलियों में सम्मिलित हो जाने से, काम की गति बहुत बढ़ गई। वे लोग स्वयं भी कार्य कर रहे थे और अपने साथियों का निर्देशन भी करते जा रहे थे। उनकी कार्य-पद्धति सुचारु भी थी और तीव्रगामी भी।...राम देख रहे थे कि अनायास ही ब्रह्मचारियों तथा जनसैनिकों को प्रथम कोटि का कृषि-प्रशिक्षण प्राप्त हो रहा था...।
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