उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"मेरा विचार है कि मेरी बस्ती के सारे लोग शस्त्रबद्ध होकर खान पर चले जाएं।" अनिन्द्य बोला, "इससे जनप्राण और प्राकृतिक संपत्ति एक ही स्थान पर होने के कारण हमें दो स्थानों की रक्षा नहीं करनी पड़ेगी।"
"अनिन्द्य ठीक कह रहा है।" लक्ष्मण बोले, "इस दृष्टि से भीखन के सारे ग्रामवासियों को खेतों में रखा जाना चाहिए।"
"आश्रमवासी कहां जाएं।"
"हम अनिन्द्य की बस्ती और भीखन के ग्राम का मोह छोड़ रहे हैं, तो खाली कर दिए गए आश्रमों का मोह भी त्याग देना चाहिए।" राम बोले, "अन्यथा बहुत छोटी टोलियों में बंट जाएंगे।"
"मुझे कोई आपत्ति नहीं है।" धर्मभृत्य ने अपना मत दिया, "मैंने देख लिया है कि सौमित्र के नेतृत्व में कुटीर कितनी सुविधा और शीघ्रता से बनते हैं।"
"तो फिर ऐसा ही हो।" राम बोले, "अनिन्द्य की बस्ती तथा धर्मभृत्य के आश्रम के सब लोग खान पर एकत्र हों; तथा भीखन के ग्रामवासी तथा आनन्द सागर आश्रम के ब्रह्मचारी, यहां खेतों में रहें। किंतु भीखन के ग्रामवासी न सशस्त्र हैं, न प्रशिक्षित। वैसे भी आक्रमणकारी भूधर का प्रतिशोध लेने के लिए आ रहे हैं; इसलिए वे आक्रमण इसी ग्राम पर करेंगे, अतः सारे जनसैनिक यहीं रहें। यदि राक्षसों ने खान पर आक्रमण करने की प्रवृत्ति दिखाई तो जनसैनिकों को तत्काल वहां पहुंचना होगा।"
"ठीक है।" धर्मभृत्य बोला, "यही ठीक रहेगा।"
"दूसरी बात शस्त्रों के विषय में है।" राम पुनः बोले, "जनसैनिकों को धनुष-बाण दो, ताकि वे अन्य लोगों को दूर से ही संरक्षण दे सकें। उन्हें इतना अभ्यास हो चुका है कि वे युद्ध में भली-भांति धनुष-बाण का प्रयोग कर सकें। पचास धनुर्धारी ये होंगे। उनके अतिरिक्त मैं, लक्ष्मण, सीता, मुखर तथा धर्मभृत्य भी मुख्यतः धनुष-बाण से ही लड़ेंगे। भीखन और आनन्द सागर अपनी इच्छा से धनुष-बाण ले सकते हैं...।"
"नहीं! अभी मुझे अभ्यास नहीं है।" आनन्द सागर ने कहा।
"मुझे भी।" भीखन ने स्वीकार किया।
"तो तुम लोग भी खड्ग अथवा शूल से युद्ध करो। शेष लोगों को भी ये ही शस्त्र दिए जाएं।"
युद्ध-समिति ने तत्काल निर्देश जारी कर दिए। उन्हीं के अनुरूप व्यवस्था की गई। सब लोग अपने-अपने स्थान पर जा पहुंचे। किंतु भीखन के ग्रामवासियों की समस्या अभी तक नहीं सुलझी थी...।
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