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बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2

युद्ध - भाग 2

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2901
आईएसबीएन :81-8143-197-9

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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

"मैं सहमत हूं।" राम बोले, "यह कार्य हनुमान ही करें। किंतु अग्रिम टुकड़ियों के विषय में मेरी योजना है कि लंका की भूमि पर टुकड़ियों के रूप में नहीं, वाहिनियों के रूप में उतरा जाए।"

"तो?"

"बाईं ओर से जितना संभव हो, उतना फैलकर सौमित्र, अंगद और नील उतरें। दाहिनी ओर से वैसे ही गया, गवाक्ष और गंधमादन उतरें। सेतु के अंतिम चरण का निर्माण कर लंका की भूमि पर उतरने वाली वाहिनी मेरे साथ रहेगी। सेतु के मध्य भाग में जाम्बवान रहेंगे। सेतु के आरम्भ में सुग्रीव और विभीषण रहें। तार और केसरी सारी सेना को पार उतार, पीछे की देखभाल करते हुए आएं। सेतु की रक्षा, इस ओर के सागर-तट की रक्षा जन सैनिक करें। किष्किंधा से सम्पर्क बनाए रखने के लिए उत्तरदायी शिल्पी होंगे। शेष यूथपति अपनी-अपनी वाहिनियों के साथ यथाशीघ्र आएं।"

"यद्यपि मैं भी आगे जाना चाहता था," सुग्रीव बोले "किंतु सेना के महासेनापति की योजना उत्तम है। ऐसा ही हो, ताकि लंका में उतरते ही हमारे पांव उस भूमि पर जम जाएं और मुंह की खाकर लौटने की बात न सोचनी पड़े।"

"तो फिर यही हो।" लक्ष्मण का स्वर गंभीर था, "तत्काल इस योजना पर कार्य आरम्भ किया जाए।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्ह्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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