बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
बारह
रथ अशोक वाटिका के द्वार पर रुका। अंगरक्षकों की एक टुकड़ी आगे प्रवेश कर गई तो रावण ने भी अपना पग आगे बढ़ाया।
बिना पूर्व सूचना के राजाधिराज के आ जाने से रक्षिकाओं में खलबली मच गई थी।
रावण दृष्टि उठाकर कुछ देखे, उससे पूर्व ही प्रतिरावण का ठहाका गूंजा, "बस कर लिया निर्वाह मंदोदरी को दिए हुए वचन का? आज अकेले ही चले आए सीता से मिलने! न वे दासियां न स्त्री रक्षिकाएं, न रानियों की शोभा-यात्रा, न वे भेंट-उपहार? क्या सोचेगी सीता?"
रावण का सिर भन्ना गया। उसके राज्य और परिवार के भीतर क्या यहां तो उसके अपने मस्तिष्क के भीतर उसका शत्रु घुसा बैठा था। पहले तो इसी का गला घोंटना होगा...पर तब वह प्रतिरावण स्वयं ही कहीं विलीन हो गया था। रावण जानता है, जब उसका क्रोध अथवा अहंकार उद्दाम हो उठता है, तो प्रतिरावण या तो चुपचाप सोया रहता है, या जागता भी है तो कुछ बोलता नहीं...
रावण ने सीता को देखा : निश्चय ही बिना किसी पूर्व-सूचना के रावण को इस प्रकार आया देख, वह चकित हो रही थी। भय, आश्चर्य, आशंकाएं-जाने कितने भाव उसकी आंखों में थे और उसके रूप को एक विचित्र भंगिमा प्रदान कर रहे थे। रावण की इच्छा हो रही थी-उसे देखता ही जाए...ऐसा रूप रावण ने कभी नहीं देखा...ऐसी गरिमा, ऐसा साहस और ऐसा चरित्र रावण ने कभी नहीं देखा...रावण की रानियों, प्रेमिकाओं, रखैलों, भोग्याओं और दासियों में एक भी ऐसी स्त्री नहीं है...। और इस स्त्री को उससे छीनने के लिए राम आया है...
रावण के शरीर का सारा उक्त उसके मस्तिष्क की ओर दौड़ चला...रावण सारे विश्व का नाश कर देगा, पर सीता नहीं देगा...पर तत्काल रावण के मन से प्रश्न उठा : क्या सीता को राम के आने का कोई आभास है?...अवश्य होगा। चारों ओर इतना कोलाहल है। वानरों के स्वर आते होंगे। यहां के रक्षक-रक्षिकाओं में उसकी चर्चा होती होगी...
"सीते!" रावण के स्वर में कूरता तथा माधुर्य का विचित्र मिश्रण था, "तेरी भी प्रतीक्षा समाप्त हुई, और मेरी भी। अपनी मुक्ति के लिए जिसकी प्रतीक्षा तुम कर रही हो, वह सागर पार कर लंका के द्वार तक आ गया था...।"
"राम...। "
"हां राम! कल रात तुमने सागर तट से उठता कोलाहल सुना होगा। वह अपनी सेना लेकर आया था...बहुत प्रसन्न हो कि वह तुम्हें मुक्त कराकर अंगीकार कर लेगा।" रावण ने अट्टहास किया, "वह भी यह समझकर आया था कि वह यहां अपनी सीता को प्राप्त कर लेगा।" रावण ने पुनः अट्टहास किया और हंसता ही चला गया।
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