बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
'किंतु उस संधि को आप भंग कर चुके हैं : आज आप सीता से मिलने के लिए अकेले क्यों गए थे।" मंदोदरी बोली, "और फिर राम के ससैन्य आ पहुंचने से परिस्थितियां बदल नहीं गई क्या?"
"सूचना मिल गई तुम्हें।" रावण के दांत पीस लिए, "मुझसे अच्छे गुप्तचर तो तुम्हारे पास हैं।"
"गुप्तचर आपके भी बुरे नहीं हैं।" मंदोदरी शांत स्वर में बोली, "किंतु आपकी मुंदाधता आपको सत्य सुनने नहीं देती।"
"रानी।"
"प्रमाण मिल गया न।" मंदोदरी वक्रता से मुस्कराई, "मेरे मुख से निकला सत्य नहीं सुन सकता, तो गुप्तचरों से क्या सुन सकेंगे।"
"मंदोदरी।" रावण कठोर स्वर में बोला, "अपनी जिह्वा को नियंत्रण में रखो। ऐसा न हो कि मुझसे कुछ अवांछित हो जाए।"
"धमकाने का प्रयत्न मत कीजिए।" मंदोदरी का स्वर दृढ़ हो गया, "यदि आप अपनी पत्नी की हत्या कर राम पर विजय प्राप्त करने की बात सोच रहे हैं तो गलत सोच रहे हैं। आपके तनिक से दुर्व्यवहार से आपका सगा भाईं आपके शत्रु से मिल गया है। आपकी आंखें अब भी नहीं खुलीं क्या?" मंदोदरी रुकी "आपको पता भी है कि लंका में क्या हो रहा है? आप कटु सत्य नहीं सुन सकते, इसलिए कोई मंत्री, कोई गुप्तचर आपको ठीक सूचना देने का साहस नहीं करता।"
"क्या हो रहा है लंका में?"
"लंका नगर की प्राचीर के बाहर रहने वाले समस्त निर्धन वानर-अवानर श्रमिक अपनी छैनी-हथौड़ी के साथ राम से जा मिले हैं। जो लंका में निर्माण करते थे, अब वे उसका नाश करेंगे।"
"श्रमिकों के पलायन से डर गई हो?" रावण हंसा, "युद्ध सैनिक लड़ता है, श्रमिक नहीं।"
"जानती हूं। पर क्या आप जानते हैं कि श्रमिक काम न करे तो सैनिक लड़ नहीं सकता। मंदोदरी का स्वर कटु हो गया, "और बात इतनी ही नहीं है। लंका के भीतर इतनी बड़ी संख्या में रहने वाले निर्धन लोग, राम की सेना के दबाव से घबराई हुई लंका में या तो लूट-पाट मचाने की तैयारी में हैं, या परकोटा फांदकर राम के पक्ष में जा मिलने की।"
"वे ऐसा नहीं कर सकते।" रावण अविश्वास से बोला, "वे यहां के नागरिक हैं। लंका उनकी अपनी मातृभूमि है।"
मंदोदरी उपहास करती हुई हंस पड़ी, "आज याद आया है आपको कि वे लंका के नागरिक हैं। जब उनके नंगे-भूखे बच्चे, बिना भोजन, आवास, शिक्षा और औषधि के, या तो पशुओं के समान जी रहे थे या मर रहे थे-तब आपने उन्हें नागरिक माना था क्या?" उसने घूरकर रावण को देखा, "और जो आपके नागरिक थे वे इसलिए थे, क्योंकि लंका में उनके लिए सुख-सुविधा थी, शांति और सुरक्षा थी। सैनिक आक्रमण जैसी आपत्ति लाने वाले राजा के नागरिक बनकर वे नहीं रहना चाहते। वे इस प्रयत्न में हैं कि किसी प्रकार वे लंका से निकलकर सागर तट पर पहुंच जाएं और अपने परिवार और धन के साथ इस संकटग्रस्त क्षेत्र से दूर निकल जाएं...आपको पता है आज लंका में स्वर्ण मुद्राओं में भी एक दिन के लिए रथ नहीं मिल रहा। किसी ने आपको बताया कि लंका का प्रत्येक नागरिक घबराया हुआ है कि एक वानर आया था तो लंका को अग्निसात कर गया था : आज वानर-सेना आई है तो क्या करेगी?"
"तुम क्या चाहती हो!"
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