बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
राम का संकेत पाते ही सहायक सैनिकों की एक टुकड़ी ने अपने हाथों के पत्थर लंका की प्राचीर की ओर उछाल दिए। पत्थर पड़ते ही कुछ राक्षस सैनिक प्राचीर के ऊपर प्रकट हुए; किंतु तब तक सहायक सैनिकों की पहली टुकड़ी पीछे हट गई थी और उसका स्थान दूसरी टुकड़ी ने ले लिया था। पत्थरों की वर्षा फिर हुई। राक्षस सैनिक पत्थरों की बौछार का अर्थ समझ नहीं पाए और प्राचीर से नीचे उतर गए।
एक के पश्चात् एक सहायक-सैनिक-टुकड़ी आती रही और पत्थर बरसाकर और पत्थर लाने के लिए पीछे हट जाती रहीं। राक्षसों की ओर से इस पाषाण-आक्रमण का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं आ रहा था। तभी राम ने पुनः संकेत किया और लक्ष्मण के नेतृत्व में सैनिक शिल्पी आगे बढ़ गए। ये शिल्पी अधिकांशतः वे लोग थे, जो वानर सेना के आने से पूर्व, लंका में दैनिक श्रम के आधार पर अपना भरण-पोषण करते थे।
शिल्पियों ने स्फूर्ति से आगे बढ़ पाषाण-वर्षा की छाया में परिखा पर एक अस्थायी-सा सेतु बनाया और उसकी सहायता से एक दीर्घाकार सीढ़ी प्राचीर के साथ टिका दी।
अंगद पहले से तैयार खड़े थे। सीढ़ी लगते ही वे भागते हुए प्राचीर पर जा खड़े हो गए। निहत्थे अंगद बीच में प्राचीर पर खड़े थे और प्राचीर के भीतर राक्षस सेना और बाहर वानर सेना खड़ी थी। उस समय दोनों ओर स्तब्धता थी-न वानर सेना, पाषाण-वर्षा कर रही थी और न राक्षस-सेना बाण-वर्षा।
अंगद ने दृष्टि उठाकर देखा : राक्षस सेना के आगे-आगे एक बहुमूल्य तथा असाधारण रूप से सुन्दर रथ खड़ा था। ...निश्चय ही, यही रावण का रथ होगा। उसमें बैठा हुआ व्यक्ति, अंगद को स्पष्ट नहीं दीख रहा था; किंतु उसकी आकृति-प्रकृति, वेष-भूषा तथा आस-पास के लोगों के उसके प्रति व्यवहार से यही अनुमान होता था कि वह रावण ही होगा।
"मैं राम-दूत, किष्किंधा का युवराज तारा-पुत्र अंगद हूं।" अंगद ने उच्च स्वर में अपना परिचय दिया, "मैं रावण के लिए अपने सेना-नायक आर्य राम का संदेश लाया हूं।"
अंगद ने देखा, नीचे खड़ी सेना में कुछ अव्यवस्था फैल गई थी। वे समझ नहीं पाए कि यह राम के दूत-मात्र का भय था या रावण के सैनिकों ने उन्हें हनुमान ही समझा था।
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