बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
"मेरा भी कुछ ऐसा ही विचार है।" जाम्बवान के चुप होने पर राम बोले, सामान्यतः आजीविका के लिए युद्ध-वृत्ति अपनाने वाला सैनिक भी बुरा नहीं माना जाता। साम्राज्यों की वेतन-भोगी सेनाएं इसी कोटि में आती हैं। किंतु हमारी सेना इस अर्थ में किष्किंधा की वेतन-भोगी सेना नहीं हैं। न हमारे पास इतना धन है कि उनके बल पर हम सेनाएं संगठित कर लें और न वह हमारा लक्ष्य है। हमारी सेना एक प्रकार की आत्म निर्भर जन-सेना है, जो अन्याय के नाश और न्याय की स्थापना के लिए लड़ रही है। यदि वे नवांगतुक इसी रूप में सेना का अंग बनना चाहें तो मुझे इसमें कोई दोष दिखाई नहीं पड़ता...। एक बात और है राम तनिक रुके, "अनुकूल जनसंख्या के बीच रहकर युद्ध करने में हमें भी सुविधा ही रहेगी। यदि हम उनकी इच्छा के विरुद्ध उनको स्वयं से पृथक कर देते हैं, तो उसका प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है। वे लोग हमसे असहयोग भी कर सकते हैं। मैं यह नहीं कर रहा कि उनके असहयोग की आशंका से भयभीत होकर हम उनकी प्रत्येक उचित-अनुचित इच्छा पूरी करें, किंतु अपने मित्रों को अपनी नासमझी से स्वयं से दूर भगा देना तो बुद्धिमानी नहीं है।"
"किंतु उनकी व्यवस्था?" तार कुछ आवेश में बोले, "उनका भोजन, वस्त्र, आवास, शस्त्र...?"
"हां। इस विषय में भी सोचना होगा। राम धीरे से मुसकराए, किन्तु उसके पहले स्पष्ट कर दूं कि उन लोगों को नियमित सैनिक के रूप में ग्रहण करने की बात मैं नहीं कह रहा हूं। उन्हें हम सहायक सैनिक रूप में ही अंगीकार करें। यथासंभव वे अपने ग्रामों में रहें, यथासंभव अपना कार्य भी करें। इस प्रकार भोजन, आवास तथा वस्त्रों के संदर्भ में आत्मनिर्भर रहें। हमारे प्रशिक्षक उनके ग्रामों में ही उन्हें यथासंभव सैनिक प्रशिक्षण दें और जहां तक संभव हो उन्हें शस्त्र दिए जाएं अथवा शस्त्र-निर्माण का कार्य सिखाया जाए। पर उनमें जो अच्छे सैनिक सिद्ध हों, उन्हें नियमित सैनिक का पद दिया जाए और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें बचावपूर्ण संघर्ष का दायित्व भी सौंपा जा सकता है। वे लोग इस क्षेत्र में हमारे प्रहरी हो सकते हैं, हमारे सूचना-चर अथवा संदेशवाहक हो सकते हैं, हमारी भूमि और हमारे मार्गों के रक्षक हो सकते हैं, शक्ति प्रदर्शन में हमारे सहायक हो सकते हैं, व्यूह-निर्माण से हमारा अंग हो सकते हैं तथा समय आने पर आवश्यक सामग्री के लाने-ले जाने का भी कार्य कर सकते हैं।"
"इससे किसी को कोई असहमति नहीं हो सकती।" सुग्रीव बोले, "यदि हमें सैनिक-असैनिक कार्यों के लिए सहायक मिल जाते हैं और उनसे हमारा बोझ भी नहीं बढ़ता तो हमें क्या आपत्ति हो सकती है।"
सुग्रीव की सहमति के पश्चात किसी ने भी असहमति प्रकट नहीं की और राम की योजना सर्वसम्मति से स्वीकार कर ली गई।
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