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बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2

युद्ध - भाग 2

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2901
आईएसबीएन :81-8143-197-9

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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

रावण ने ब्रह्मबाण अपने धनुष पर चढ़ाया और लक्ष्मण पर चला दिया। बाण लक्षण के वक्ष में लगा...। अपने धनुष पर लक्ष्मण की पकड़ ढीली हो गई। उन्हें लगा कि उनके हाथ से धनुष खिसक रहा है और उनका सिर चकरा रहा है।-लक्ष्मण ने सिर को झटका। स्वयं को संतुलित किया और पुनः सनद्ध होकर खड़े हो गए। उन्होंने एक के पश्चात् एक कर, तीन बाण चला दिए। रावण के धनुष की प्रत्यंचा कट कर झूल गई। प्रतिरावण जोर से हंसा, "बस रावण! इतनी ही शक्ति थी तेरी?"

अपने आवेश में रावण सब कुछ भूल गया। उसे लगा, उस पर नाश का आवेश छा गया। इस समय उसके हाथ में जो भी भयंकर से भयंकर अस्त्र होता, वह उसकी को चला देता ...मदांध रावण के मन में लक्ष्मण के साथ-साथ अपने प्रति भी क्रोध जागा। ...क्या हो गया है उसे। यह कल के इन छोकरों को भी उपयुक्त पाठ नहीं पढ़ा सकता। उसने ब्रह्मा का दिया हुआ दिव्यास्त्र चलाया और यह छोकरा उसे झेल गया। व्यर्थ ही ब्रह्मा उसके पितामह और शंकर उसके गुरु कहलाते हैं...। शिव ने क्यों नहीं उसे वैसा धनुष दिया, जैसा सीरध्वज जनक के घर पर पड़ा था। अपनी भुजाओं की शक्ति से न चलाकर, यंत्र-परिचालित धनुषों से वह देवास्त्र प्रक्षेपित करता और शिव को जलाकर क्षार कर देता...

आवेश में रावण ने अपने रथ के पिछले भाग से अग्नि के समान लपलपाती हुई ब्रह्म-शक्ति उठा ली। यह शक्ति ब्रह्मा ने उसे दी थी और आज तक अमोध मानी जाती थी। रावण ने नये धनुष पर शक्ति चढ़ा, लक्ष्मण का लक्ष्य साध प्रत्यंचा छोड़ दी...

शक्ति वस्तुतः अमोघ थी। लक्ष्मण के बाण मार्ग में शक्ति को नहीं काट सके। शक्ति लक्ष्मण के वक्ष में लगी और लक्ष्मण के शरीर में भयंकर जलन उत्पन्न हो गई। जैसे कोई भयंकर विष उनके रक्त में पहुंचकर अग्निदाह कर रहा हो। यह ज्वाला असहनीय थी, असह्य...।

लक्ष्मण मूर्छित होकर भूमि पर आ गिरे।

रावण का रथ आगे बढ़ा और वानर सेना तितर-बितर हो गई। लक्ष्मण के धराशायी होने का समाचार दावानल के समान फैल गया।

रावण ने सारथी को रुकने का संकेत किया।

रथ लक्ष्मण के मूर्छित शरीर के पास रुका...और सहसा वानर यूथपतियों की समझ में आया कि रावण के मन में क्या है...। रावण ने मूर्छित लक्ष्मण की भुजा पकड़ी ही थी कि असंख्य वानर रावण पर अपने अस्त्रों-शस्त्रों के साथ झपट पड़े। हनुमान ने अपनी गदा का एक भरपूर प्रहार रावण के वक्ष पर किया...लहर पर लहर के समान बढ़कर आते हुए वानरों ने रावण को विचलित कर दिया। लक्ष्मण के मूर्छित शरीर को वह उठा नहीं पाया। किंतु, इस आपाधापी में वह एक स्थान पर टिक नहीं सका। हनुमान का प्रहार भी लक्ष्य-च्युत हो गया। कंधे पर हुए प्रहार के कारण रावण क्षर भर के लिए निश्चेष्ट हो गया...। उसके सारथी ने उसे सहारा देकर रथ में बैठाया और रथ मोड़ लिया।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्ह्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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