बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
"युद्ध-क्षेत्र में हमारा कोई हताहत सैनिक तो शेष नहीं है?" राम ने पुनः पूछा।
"नहीं आर्य!" तेजधर बोला, "आहत सैनिक पहले ही चिकित्सा शिविर में पहुंचाए जा चुके हैं। वीरगति पाने वाले सैनिकों के शरीरों का दाह-संस्कार किया जा रहा है।" वह तनिक रुककर बोला, "युद्ध-क्षेत्र में अब केवल राक्षस योद्धाओं के ही शरीर पड़े हैं। रावण की ओर से उनकी कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है। सेनापतियों और राजकुमारों के शव तो वे उठा ले जाते हैं; साधारण सैनिकों के शव वहीं पड़े रह जाते हैं, या उन्हें समुद्र का जल बहाकर इधर-उधर फेंक देता है।"
"यदि विजय हमारी हुई तेजधर! तो उनका संस्कार भी हमें ही करना पड़ेगा।" राम धीरे से बोले।
उनका वार्तालाप वहीं रुक गया। श्रमिक टोली के साथ लक्ष्मण अत्यंत उत्साह भरे हुए उनकी ओर आ रहे थे...। सीता हरण के पश्चात् से लक्ष्मण के हाव-भाव, वार्तालाप, गति तथा अन्य क्रियाओं पर गंभीरता का एक गहन आवरण छा गया था। बहुत प्रसन्नता तथा उत्साह के क्षणों मंत भी अब वे अपनी गंभीरता छोड़ चपल दिखाई नहीं पड़ते थे; किंतु आज कुछ असाधारण हो गया था...उनके साथ आने वाले काठ-शिल्पी भी अत्यन्त प्रसन्न दिखाई पड़ रहे थे...
"भैया! हम सफल हो गए।" निकट आकर लक्ष्मण बोले।
"क्या हुआ सौमित्र?"
"हमारे काठ-शिल्पियों ने एक यंत्र बनाया है भैया!" लक्ष्मण ने अपने साथियों की ओर देखा, "यंत्र अत्यंत सरल है, पर उसमें बड़ी-बड़ी शिलाएं रखकर झटके से शत्रुओं के रथों पर फेंकी जा सकती हैं। यंत्र चक्रों पर लगा है और खींचकर कहीं भी ले जाया जा सकता है। यदि हमारे शस्त्र-शिल्पी ऐसे अनेक यंत्र बना लें तो हमें शत्रुओं के रथों का उतना भय नहीं रह जाएगा।" लक्ष्मण का उत्साह वहां उपस्थित लोगों में भी संचरण कर गया। प्रायः लोगों ने हर्षध्वनि की।
"आओ! तुम्हारा यंत्र देखें।" राम बोले, "हमारे पहले दिन के युद्ध के आधार पर राक्षस पहले ही कह रहे हैं कि वानर सेना शस्त्रों से नहीं पत्थरों और काठ से युद्ध करती है। अब यदि इन यंत्रों से हमने उनके हाथों पर शिलाएं फेंकी तो वे इसका और अधिक प्रचार करेंगे!"
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