मनोरंजक कथाएँ >> सच्ची साधना सच्ची साधनादिनेश चमोला
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‘‘अरे विभु ! जब तुम अच्छे कपड़े नहीं पहन सकते, अच्छा बस्ता नहीं रख सकते, अच्छे जूते नहीं ला सकते, अच्छा खाना नहीं खा सकते तो तुम अच्छे विद्यार्थी कैसे बन सकते हो ?’’ विभा की सहेली ऋचा ने अपनी कार के शीशे से बाहर सिर निकाल कर हँसते हुए कहा था।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मेहनत का सम्मान
‘‘अरे विभु ! जब तुम अच्छे कपड़े नहीं पहन सकते,
अच्छा बस्ता
नहीं रख सकते, अच्छे जूते नहीं ला सकते, अच्छा खाना नहीं खा सकते तो तुम
अच्छे विद्यार्थी कैसे बन सकते हो ?’’ विभा की सहेली
ऋचा ने
अपनी कार के शीशे से बाहर सिर निकाल कर हँसते हुए कहा था।
यह सुन विभा को बहुत बुरा लगा था। क्या सचमुच गरीब होना अभिशाप है ? क्या गरीब छात्रा जीवन में अच्छी छात्रा नहीं बन सकती ? गरीबी का सम्बन्ध शरीर से हो सकता है, बुद्धि से तो नहीं।
फिर बड़े-बड़े महापुरुष भी तो गरीबी के दिन झेल कर ही महान बने हैं। सोनी व ऋचा जैसी धनवान लड़कियों का क्या है, उन्हें अपने माता-पिता, घर-बार, कोठी-कार व पैसे का घमण्ड हो सकता है...किन्तु आखिर ईश्वर भी तो यह सब देखते ही होंगे..उनके कहने से मुझे निराश नहीं होना चाहिए। बल्कि इसे चुनौती मान सब साकार कर दिखाना चाहिए। विभा मन-ही-मन अपने ढेर सारे प्रश्नों का हल ढूँढ़ डालती। फिर दूसरे ही क्षण वह प्रसन्न हो अपने पढ़ने में डूब जाती।
विभा गांव की रहने वाली थी। उसके पिता किसान थे जो तीन वर्ष पहले स्वर्ग सिधार गए थे। वह अपनी गरीब मां की इकलौती लड़की थी। गाँव के लोग भी लड़की को स्कूल भेजने पर उसकी माँ से जले-भुने रहते कि खाने को अन्न नहीं और चली है लड़की को स्कूल पढ़ाने विभा की माँ गरीब भले ही थी लेकिन विचारों की अमीर थी। वह विभा को पढ़ा-लिखाकर उसके पिता का नाम ऊँचा करना चाहती थी।
इसलिए माँ गरीबी में दिन बिताकर भी उसे प्रेरणाभरी कहानियाँ सुनाती। कभी तो माँ विभा को इतना रोमांचित करता कि विभा वीर सिपाही की तरह अपने गरीब जीवन की बन्दूक तान देती व सब कुछ भुला पढ़ने-लिखने, काम करने व गाने में मस्त रहती।
यह सुन विभा को बहुत बुरा लगा था। क्या सचमुच गरीब होना अभिशाप है ? क्या गरीब छात्रा जीवन में अच्छी छात्रा नहीं बन सकती ? गरीबी का सम्बन्ध शरीर से हो सकता है, बुद्धि से तो नहीं।
फिर बड़े-बड़े महापुरुष भी तो गरीबी के दिन झेल कर ही महान बने हैं। सोनी व ऋचा जैसी धनवान लड़कियों का क्या है, उन्हें अपने माता-पिता, घर-बार, कोठी-कार व पैसे का घमण्ड हो सकता है...किन्तु आखिर ईश्वर भी तो यह सब देखते ही होंगे..उनके कहने से मुझे निराश नहीं होना चाहिए। बल्कि इसे चुनौती मान सब साकार कर दिखाना चाहिए। विभा मन-ही-मन अपने ढेर सारे प्रश्नों का हल ढूँढ़ डालती। फिर दूसरे ही क्षण वह प्रसन्न हो अपने पढ़ने में डूब जाती।
विभा गांव की रहने वाली थी। उसके पिता किसान थे जो तीन वर्ष पहले स्वर्ग सिधार गए थे। वह अपनी गरीब मां की इकलौती लड़की थी। गाँव के लोग भी लड़की को स्कूल भेजने पर उसकी माँ से जले-भुने रहते कि खाने को अन्न नहीं और चली है लड़की को स्कूल पढ़ाने विभा की माँ गरीब भले ही थी लेकिन विचारों की अमीर थी। वह विभा को पढ़ा-लिखाकर उसके पिता का नाम ऊँचा करना चाहती थी।
इसलिए माँ गरीबी में दिन बिताकर भी उसे प्रेरणाभरी कहानियाँ सुनाती। कभी तो माँ विभा को इतना रोमांचित करता कि विभा वीर सिपाही की तरह अपने गरीब जीवन की बन्दूक तान देती व सब कुछ भुला पढ़ने-लिखने, काम करने व गाने में मस्त रहती।
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