मनोरंजक कथाएँ >> भालू दादा भालू दादादिनेश चमोला
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बाबू दादा की रोमांचक कहानी...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मछली का उपदेश
सुनन्दा पर्वत की तलहटी में एक सुन्दर नदी थी-सोनभद्र। उसका पानी स्वच्छ
व मीठा था। इसलिए नदियों की ही नहीं बल्कि समुद्र तक की मछलियाँ वहाँ आया
करतीं। मछलियों की इतनी प्रजातियाँ और कहीं नहीं मिलती थीं जितनी कि
सोनभद्र में। सोनभद्र नदी अत्यन्त गहरी थी। वह बहुत तेजी से बहती थी।
बड़े-बड़े मछुआरे भी उसमें मछली नहीं पकड़ सकते थे। मछलियाँ निर्भर हो
पानी में इधर-उधर टहलती थीं।
एक बार सुबाहु नामक दुष्ट मछुआरा न जाने कहाँ से वहाँ आ धमका। वह नामी गोताखोर था। उसने एक छोर से हर रोज ढेरों मछलियां मारना प्रारम्भ कर दिया। उसके आतंक से बड़ी-बडी मछलियाँ सोनभद्र को छोड़ दूसरे सागर व नदियों को चल दीं।
लेकिन छोटी मछलियों की रानी सोनम सोनभद्र को छोड़ने को कतई तैयार न थी। इसलिए उसने अपनी सहेली मछलियों से कहा- ‘‘देखो ! सोनभद्र का-सा प्रेम व अपनापन हमें संसार में और कहीं नहीं मिलेगा। सबसे अच्छा मित्र दुनिया में वह होता है जो संकट में काम आता है। कल तक सोनभद्र पर कोई संकट नहीं था तो दूर-दूर की मछलियाँ यहाँ आती थीं। लेकिन आज संकट पड़ने पर सब तितर-बितर हो गईं। हमारे सुख-दुःख में सोनभद्र का ही सदा हाथ रहा है।
एक बार सुबाहु नामक दुष्ट मछुआरा न जाने कहाँ से वहाँ आ धमका। वह नामी गोताखोर था। उसने एक छोर से हर रोज ढेरों मछलियां मारना प्रारम्भ कर दिया। उसके आतंक से बड़ी-बडी मछलियाँ सोनभद्र को छोड़ दूसरे सागर व नदियों को चल दीं।
लेकिन छोटी मछलियों की रानी सोनम सोनभद्र को छोड़ने को कतई तैयार न थी। इसलिए उसने अपनी सहेली मछलियों से कहा- ‘‘देखो ! सोनभद्र का-सा प्रेम व अपनापन हमें संसार में और कहीं नहीं मिलेगा। सबसे अच्छा मित्र दुनिया में वह होता है जो संकट में काम आता है। कल तक सोनभद्र पर कोई संकट नहीं था तो दूर-दूर की मछलियाँ यहाँ आती थीं। लेकिन आज संकट पड़ने पर सब तितर-बितर हो गईं। हमारे सुख-दुःख में सोनभद्र का ही सदा हाथ रहा है।
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